शनिवार, 17 दिसंबर 2011

रुपए का सुसाइड नोट

जो रुपया ईश्वर की तरह सारी दुनिया को चलाता है, दाना-पानी देता है, सुख-चैन देता है... जिसके पीछे सारी दुनिया पागल है, बावरी-सी दिन रात दौड़ती रहती है... जो रात में सोने देता है, दिन में बैठने देता है... जो इतना शक्तिशाली है कि गरीब को राजा और राजा को महाराजा बना दे... जो बिना हाथ-पांव के ही सब कुछ करने में समर्थ है, पलभर में कहीं भी -जा सकता है... जिसके पास जुबान नहीं है फिर भी वह बोलने में उस्ताद है, कान नहीं हैं फिर भी सब कुछ सुनने में समर्थ है... जिसका कोई रूप नहीं है फिर भी वह कामदेव को लजाता है... जो सबसे बड़ा मर्ज है और सब मर्जों की दवा भी है... जो दिखने में इतना अशक्त है कि बच्चा भी उसे फाड़कर फेंक सकता है, लेकिन जिसमें सौ हाथियों से ज्यादा ताकत है... जो चाहे तो महाशांति को जन्म दे और चाहे तो महा अशांति को... जो कपड़े नहीं पहनता लेकिन बड़े-बड़ों का तन ढकता है, चाहे तो उनके कपड़े उतरवा भी दे... जो बिना मस्तक के है लेकिन कटवा सकता है हजारों के मस्तक... वह जिसके पास रहे वह हंसता फिरे और जिसके पास रहे उसका दिन-रात रोते-रोते कटे... वह नाराज हो जाए तो मनुष्य के सारे ग्रह विपरीत हो जाएं... जिसकी जम्हाई मात्र से पूरी दुनिया को नीद जाए, जिसके ठहरने से संसार की सांसें लड़खड़ाने लगें, वही रुपया छाती पीट-पीटकर रोता मिला। खुद से आजिज आकर उसने आत्महत्या की कोशिश की। छत से कूदा, समंदर में छलांग मारी और गले में फांसी का फंदा लगाया। उसके चाहने वालों की किस्मत अच्छी थी कि वह बच गया। सुसाइड नोट अर्थात मृत्युपूर्व लिखा गया लेख बंदे के हाथ लगा है। आप भी पढें-

मैं नितांत अपनी इच्छा से मर रहा हूं। इसके लिए जरा-सा भी किसी को दोषी माना जाए। हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी को तो बिलकुल ही नहीं। वे बेचारे पढ़े-लिखे जहीन आदमी हैं। उन्होंने आज तक किसी का दिल नहीं दुखाया। मित्र तो खैर मित्र हैं, वे दुश्मनों का दिल भी नहीं तोड़ते। अण्णा, विपक्ष, अमेरिका, पाकिस्तान सबकी बात वे समान रूप से सुनते और मानते हैं। कभी सालभर में एक-दो बार तिथि-त्योहार पर बोलते हैं, इसलिए उनकी बात से दिल टूटने का सवाल ही पैदा नहीं होता। वित्तमंत्री साहब वित्त मंत्रालय के अलावा और तमाम चीजें संभालते हैं। कब किस पर लाठी चलवानी है, कब किस पर गोली दगवानी है। किस आंदोलन को किस तरीके से कुचलना है, किस दुश्मन को किस तरह से मसलना है, कब किसे पटाना है, कब किसे मिटाना है, वे इसी में लगे रहते हैं। अतः मेरे बारे में सोचने का वक्त ही नहीं। ऐसे में वो मुझे तकलीफ भी देंगे तो कैसे? इन्हें दोषी मानकर इनका बुढ़ापा बिगाड़ें।

सच तो यह है कि मैं ससुरे डालर की वजह से मर रहा हूं। वह सात समंदर पार रहकर भी मेरा जीना हराम किए हुए है। मैं यहां ज्यों-ज्यों दुबला होता हूं, वह वहां उसी रफ्तार में मोटाता जाता है। ज्योतिषियों की सलाह पर मैने अपना हस्ताक्षर भी डालर की तरह ही करने लगा, इसके बाद भी मेरे नाम और दाम में बट्टा लग रहा है। डालर जाने क्या खाता है कि उस एक से भिड़ने के लिए हम जैसे पचास-पचपन लगते हैं। जब मेरा स्वास्थ्य खराब होता है तो कोई देखता तक नहीं, उधर उसको छींक भी आती है तो सारी दुनिया मिजाजपुरसी में लग जाती है। वह वहां से आंख दिखता है तो यहां अपनी पतलून गीली हो जाती है। कब तक यह अपमान सहूं। इससे बेहतर तो मरना है।

मैं गद्दारों की तरह जीना नहीं चाहता कि जिस थाली में खाऊं उसी में छेद करूं। मुझे अपना वतन प्यारा है, आजादी प्यारी है, खुली हवा में सांस लेने का मन करता है, लेकिन कुरसी के जिन्न मुझे गुलाम बनाकर बैंकों की तिजोरियों में ठूसना चाहते हैं। अपने देश से दूर स्विटजरलैंड जैसे देशों में मुझे बंदी बनाकर रखना चाहते हैं। मैं जो गंगा की तरह पवित्र रहकर जीना चाहता हूं, ये मुझे काजल की तरह काला बनाने में लगे हुए हैं। खुद उजले कपड़े पहनकर संसद में आराम करते हैं और मुझे काला धन बनाकर देशवासियों से अपमानित करवाते हैं। मैं वतन लौटना चाहता हूं, लेकिन ये मुझे बेवतन करने में लगे हैं। ऐसे जीने से बेहतर तो जीना है। मैं अपनी मुक्ति के लिए साधुओं और संतों के पास भी गया, लेकिन मुझे देखते ही उनकी भी लार टपक पड़ी। वे मुझे माया कहकर तिरस्कृत भी करते रहे और भगवान की मूर्ति के पीछे छिपाते भी रहे। भगवान को मंदिर में और मुझे तिजोरियों में बंदी बनाने का हर जतन किया। मैं गरीब की झोपड़ी में जाना चाहता हूं, लेकिन ये सब मिलकर मुझे महलों की ओर धकेल रहे हैं। अपनी इच्छा से जी नहीं सकता, मर तो सकता हूं। रोज-रोज गरीबों को मरता देखने से अच्छा है, खुद ही मर जाऊं। इनके चरित्र की तरह रोज पतित होने से अच्छा है, जीवन से मुक्ति मिले।

छंद चिकोटी

रुपए के पीछे यहां, भागें सारे लोग।

त्याग तपस्या साधना, सच में केवल ढोंग।

रुपया जिसके पास है, वह दिखता भगवान।

बिन मांगे ही सौंपता, जग सारा सम्मान॥

रुपए के संसार में, रुपए की सरकार।

रुपया माई-बाप है, रुपया ही परिवार॥

-ओम द्विवेदी

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