शनिवार, 23 मार्च 2013

माफ़ करना भगतसिंह


मैं भी उठा सकता हूँ बम
लेकिन साहस नहीं है कलेजे में
मैं भी बोल सकता हूँ इन्कलाब जिंदाबाद
लेकिन कांप जाती है ज़बान

नौजवानी मेरे पास भी है

लेकिन उसके सपने में है केवल नौकरी और छोकरी
आज़ाद नहीं है मेरा भी देश
लेकिन आजादी की इच्छा मर गई है मेरे भीतर

मुझे भी वतन के लिए बुलाता है फांसी का फंदा
लेकिन रह-रहकर आता है बीवी और बच्चों का ख्याल
मै कैसे कहूँ भगतसिंह
कि मैं तुम्हारी तरह जीना चाहता हूँ
रात के ख़िलाफ़
एक दीया बनना चाहता हूँ

कैसे कहूँ तुमसे कि नहीं लड़ पा रहा हूँ
भीतर बैठे एक नपुंसक से
दीमकों से नहीं बचा पा रहा हूँ अपनी आत्मा को

मुझे माफ़ करना भगतसिंह
मैं नहीं रख पाया तुम्हारे बलिदान की लाज.

-ओम द्विवेदी

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गुरुवार, 7 मार्च 2013

आइए बधाइयाँ दें उसे



पहले उसके साथ बलात्कार करो
फिर उसे कहो निर्भया और बहादुर
पहले उसे दासी बनाओ
फिर कहो देवी
पहले कुचलो उसके सपनों को
फिर बताओ सपनों से सुन्दर
तीन सौ चौंसठ दिन जिसे मनुष्य कहने में
कांपती रही हमारी जीभ
आइए बधाइयाँ दें उसे।
  • ओम द्विवेदी  

पहले उसके साथ बलात्कार करो 
फिर उसे कहो निर्भया और बहादुर 
पहले उसे दासी बनाओ 
फिर कहो देवी 
पहले कुचलो उसके सपनों को 
फिर बताओ सपनों से सुन्दर 
तीन सौ चौंसठ दिन जिसे मनुष्य कहने में
 कांपती रही हमारी जीभ 
आइए बधाइयाँ दें उसे।