सोमवार, 9 नवंबर 2015

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

बिस्किट चला तैराक बनने

आपने भी पहली बार सुना होगा यह अचरज। जैसे ही पैकेट खोला बिस्किट खड़ा हो गया प्लेट पर...

'मैंने स्वीमिंग सीख ली है...मैं तो तैरूँगा तुम्हारी गर्म चाय के कप में।'
क्या बोलता उस सेवड़े से कि तेरे जैसे कितने तैर चुके हैं और जाके तलहटी के तलवे चाट रहे हैं। एक बार प्याली में कूदेगा तो सीधा चम्मच से बाहर निकलेगा। शक्ल ऐसी हो जाएगी कि लोग नज़र बचाने लगेंगे और नाक दबाने लगेंगे। प्लेट में पड़े-पड़े खनकता रह तो लगेगा तुझे तैरना भी आता है और तरना भी। चाय में तैरने की तो छोड़, चाय की बूँद के नीचे भी आया तो प्लेट में चिपका रह जाएगा।

सेवड़ा पोंछकर खड़ा हो गया...' मैं पार-ले जी हूँ। मुम्बई के विले पारले से आया हूँ। जुहू चौपाटी घूमी है और समुन्दर में तैरना सीखा है। मैं किसी प्याले-प्याली से नहीं डरता...' फिर समझाया 'बेटा, जब बाप पानी दिखाकर घर लौटा लाए तो उसे तैरना नहीं कहते। तैरने के लिए ये सिंके हुए मैदे का बदन काम नहीं आता। चाय में तैरने का मतलब आग है आग के दरिया में कूदना। जब विले पारले में सिंके थे, तब पानी के साथ मिलकर पहुँचे थे ओवन में। अब उघाड़े बदन चाय स्नान करोगे तो बड़े अस्पताल की बर्निंग यूनिट में दाख़िला भी नहीं मिलेगा। प्लेट में पड़े-पड़े ही कराहते रहोगे।'  जैसे-तैसे पिंड छूटा।

फिर एक दिन आ गया बिलकुल काला-कुट्ट...तोंद में सफ़ेद क्रीम भरे। बोला- 'मैं ओरियो हूँ। मेरी बहुत डिमांड है। बच्चे तो मेरी ब्यूटी पर जान छिड़कते हैं। पानी में कितना भी नहा लूँ, मेरा रंग नहीं उतरता। चाय में घुलता भी नहीं। अब तो मैं तैरूँगा।' मैंने हाथ में उठाया उस कॉलिये को,  उसकी मुंडी प्याली की तरफ़ घुमाई और कहा- 'एक बार इस चाय का रूप तो देख! दूध में नहाकर आई है। कैसी गोरी झक हो रही है। तूने अपनी शक़्ल देखी है आईने में कौवे के कपूत! लोग क्या कहेंगे कि गंगा में डूबकर पापी ने ख़ुदकुशी कर ली। मरना है तो काली चाय में मर।' जाने क्या समझ में आया और मुँह उतारकर चला गया।

अगली बार मिला तो पूरे बदन से पीत झड़ रहा था। मैंने सोचा पीलिया का मरीज़ हो गया है, अब कम से कम तैरने की बात नहीं करेगा। मूली-गन्ना की तलाश में निकला होगा, ले-देकर निकल लेगा। लेकिन उसे कहाँ रहाई पड़ती! बोला-' मैं क्रैकजैक हूँ। मुझे तो दारू में भी तैरा दो तो तैर जाऊँ। कितनी बार मदिरालय जा चुका हूँ। आज तुम्हारी चाय में तैराकी कर के रहूँगा।' लगा गेलों के आगे गला ख़राब करने का मतलब नहीं। उससे कुछ बोलता उसी बीच याद आई कि मैं टॉमी के लिए बिस्किट ख़रीदना फिर भूल गया। भोंकेगा तो क्या खिलाएँगे!!!

जब चाय ख़त्म हुई तो तब पता चला कि बहादुरी बताते-बताते साहब चुपके से कूद गए थे प्याली में...ऐसे समेटना पड़ा जैसे बाढ़ के बाद नदी के घाट की गाद समेटनी पड़ती है।
आमीन!!!
(इस व्यंग्य का मनुष्यों से कोई सम्बन्ध नहीं।)

#ओम द्विवेदी