शनिवार, 24 अप्रैल 2010

मुझको भी तो भ्रष्ट बना दो!

प्रभु! जाने किस घड़ी में मैने तुझसे विद्या का वरदान माँग लिया था। जब माँगा था तो यह सोचकर माँगा था कि यही दुनिया का श्रेष्ठ वरदान है, अब बहुत पछता रहा हूँ। संभव हो तो प्रायश्चित का मौका दो और विद्या, ज्ञान, लेखनी वगैरह अपने माल गोदाम में जमा करवा लो। अपनी मूर्खता और तुम्हारी दी हुई कृपा पर घड़ी-घड़ी रोना पड़ रहा है। कलम ने ईमानदारी का जो कैंसर दिया है, उससे मुक्ति दो। अब तो अपना दिल चौबीस कैरेट भ्रष्ट होने का है। जैसे-तैसे भ्रष्ट बना दो तभी संसार के कष्ट कटेंगे, वरना जीवन इसी तरह तिल-तिल नष्ट होगा। हे अंतरयामी! मुझे किस तरह भ्रष्ट बनाओगे यह तुम जानो, मैं तो केवल भ्रष्ट होने के लिए लालायित हूँ। एक बार संपूर्ण भ्रष्ट कर दो तो मैं जीवनभर तुम्हारी सेवा करूँगा। मंदिर वगैरह बनवा दूँगा। तीर्थयात्रा करूँगा। यज्ञ-पूजन करूँगा। बड़े-बड़े ट्रस्ट बनाकर तुम्हारे नाम का कीर्तन करवाऊँगा। भ्रष्ट होने के बाद मैं यह सब बहुत आराम से कर सकूँगा। पर्याप्त समय होगा।

वैसे तो सारी सृष्टि आपकी ही बनाई हुई है फिर भी इन दिनों की जो दुनिया है, वह मुझे हर पल भ्रष्ट होने के लिए आमंत्रित कर रही है। बड़े-बूढों ने बताया था कि दुनिया का सारा वैभव भ्रष्टाचार की खदान से निकला है। सारी अट्टालिकाएँ, सारी स्वर्ण लंकाएँ, सारी गगनचुंबी यात्राएँ बिना भ्रष्ट आचरण के संभव नहीं हैं। उन्होंने पहले ही कहा था कि तुम भ्रष्ट बनो, लेकिन मेरी ही मति मारी गई थी। देर से ही सही जाग गया हूँ, अब मेरा मार्ग प्रशस्त करो। जबसे यह महँगाई बढ़ी है और आपने बाजार को लुभावनी अदाएँ दी हैं, जबसे रोटी के लिए भूख शीर्षासन करने लगी है और दवा के आगे मर्ज गिड़गिड़ाने लगा है, तब से यह दिल और भी रह-रहकर भ्रष्ट होने का करता है। अपने देखते-देखते सारे संगी-साथी कहाँ से कहाँ पहुँच गए। कोई उन्हें भ्रष्ट होने का प्रमाण पत्र दे न दे, पर उनकी शानो शौकत किसी प्रमाण पत्र की मोहताज नहीं। कभी-कभी लगता है कि भ्रष्टों की बजाय ईमानदारों से ही प्रतिस्पर्घा करूँ, लेकिन जब दौड़ शुरू होती है तो एक भी आदमी नहीं मिलता। अकेले ज्यादा देर तक दौड़ा नहीं जाता। या तो मुझे भ्रष्टों के साथ दौड़ने का मौका दो, या फिर एकाध दर्जन लोग ऐसे भेजो जिनके साथ मैं ईमानदारी की दौड़ लगा सकूँ।

हे जगदीश्वर! मैं जानता हू कि तुम सीधे किसी को कुछ नहीं देते। अपनी कृपा सद्‌गुरुओं के माध्यम से भेजते हो। मैने अपनी विनती इस समय आप तक इसलिए पहँुचाई है क्योंकि इस समय मुझे इस मार्ग पर ले जाने वाले कई सद्‌गुरु धरती पर अवतरित हैं। आप तो बस मुझे इतना ज्ञान दो कि एक सच्चे गुरु का चयन कर सकूँ, जो मुझे शीघ्रातिशीघ्र भ्रष्ट बना दे। भ्रष्टाचार के जिन सद्‌गुरुओं का नाम इन दिनों चलन में है उनमें अपने मध्यप्रदेश के मंत्री कैलाश विजयर्गीय हैं। कहते हैं कि वे बचपन में ईमानदार थे और एक टूटे स्कूटर पर चलते थे, जबसे उन्होंने अपना रूपांतरण किया है। इंदौर शहर की आधी जमीन उनकी हो गई, लक्ष्मी उनके यहाँ पैर प्लास्टर बँधवाकर आराम करने लगी, चारों ओर उनकी जयकार होने लगी। एक ललित मोदी का नाम भी चल रहा है। वे आईपीएल नाम का क्रिकेट खेल खिलाते हैं। मोदी साहब भी रंक से चक्रवर्ती सम्राट हुए हैं। उनके दुश्मनों की कृपा से पता चला कि उन्हें भी महान भ्रष्ट संस्कारों ने ही यह मान दिया है। एक थरूर साहब हैं, जिनके चेहरे पर पचपन में भी इतनी रौनक है कि महिलाएँ खिंची चली आती हैं और आए दिन उनके नए विवाह की चर्चा रहती है। इच्छाघारी और संत नित्यानंद के इन्हीं संस्कारों ने उन्हें धार्मिक फील्ड का पावर फुल आदमी बनाया। धन-धान्य के साथ स्त्रियों का सुख भी नसीब हुआ। मेडिकल कौंसिल के केतन देसाई साहब भी भ्रष्ट हुए तो उनकी रिश्वत का रेट दो-दो करोड़ तक पहुँच गया। पुराने भ्रष्टों के बारे में बताने का मतलब है आशिकों को बार-बार 'देवदास' पढ़ाना। अब आप जिसकी तरफ संकेत कर दें, मैं उसे अपना गुरु बना लूँ और यात्रा आरंभ करूँ। आप बताने में जितना विलंब करेंगे गुरुओं की संख्या बढ़ती जाएगी। फिर आप भी कन्फ्यूज होंगे और मैं भी।

एक विनती और जगतपति! इस गुप्त विद्या को विलुप्त मत होने दें। भ्रष्ट बनाने के इस अमूल्य नुस्खे को दादी माँ के नुस्खों की तरह गुम न हो जाने दें। इसे वाचिक परंपरा से लिखित परंपरा में लाएँ। जिस विद्या ने समृद्घि के बंद दरवाजे खोले, उसे कुछ खास लोगों के पास ही मत रहने दें, वरना इस देश के आमजन का आपके ऊपर से विश्वास उठ जाएगा। संभव हो तो आईआईएम और आईआईटी जैसे भ्रष्टाचार सिखाने वाले कुछ संस्थान बनाकर विद्यार्थियों का भला करें। वैसे भी इन संस्थानों को आपने इस तरह की विद्या सिखाने का जिम्मा दिया है, लेकिन अब वक्त आ गया है कि जो काम चोरी-छिपे चल रहा है, उसे खुलेआम कर दिया जाए। यदि आप ऐसा करवा पाएँगे तो आने वाली पीढ़ियाँ आपकी एहसानमंद रहेंगी। उन्हें इस हुनर को प्राप्त करने के लिए किसी को तेल नहीं लगाना पड़ेगा।

भ्रष्ट आचरण के लिए आप सम्मान वगैरह की व्यवस्था भी करवा सकते हैं। भारत रत्न, पद्म श्री, पद्मविभूषण आदि सम्मानों के लिए आप इन्हें भी सुपात्र मानें। आखिर देश की तरक्की में उनका योगदान भी तो है। अगर वैश्विक स्तर तक आपकी पहुँच हो तो नोबेल सम्मान इस भ्रष्ट विद्या के लिए भी दिलवाओ। लेखकों को ऐसी मति दो कि वो भ्रष्ट बनाने वाले वेद-पुराणों की रचना करें। जाँच एजेंसियाँ जिन महान आत्माओं को जेल का भय दिखा रही हैं, उन्हें भ्रष्ट बनाने वाले विश्वविद्यालयों में कुलपति-प्राध्यापक बनाकर उनके अनुभव का लाभ लें। दुनिया उनके साम्राज्य का सम्मान करती ही है, उनके चरित्र को भी सम्मान के योग्य बनाएँ।

एक मुहावरा आपने भी सुना ही होगा कि लोहा लोहे को ही काटता है, ठीक उसी तरह भ्रष्ट भ्रष्ट को ही जेल ले जाने की धमकी देता है और तैयारी करता है। जो पुलिस केस दर्ज करती है, उसके बारे में आप जानते हैं कि वह एक एफआईआर दर्ज करने का क्या लेती है! सीबीआई, सीआईडी और लोकायुक्त आदि की जाँच भी कैसे होती है और कौन किसके खिलाफ करवाता है, यह भी आपको पता है। जांच के लिए जो संसदीय कमेटियाँ बनती हैं, उनका न्याय भी आपकी नजर में है। अच्छा माल देने वाला मिले तो पुलिस आपके ही खिलाफ प्रकरण दर्ज कर दे। आप विपक्ष में हों तो सरकार आपके पीछे इन जाँच एजेंसियों को लगा दे। आप भागते फिरें। जब तक आप भ्रष्ट होकर नहीं लौटें और उनकी सेवा में न हाजिर हों तब तक जाँच की दोनाली आपके पीछे-पीछे दौड़े। खैर! आप तो सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ हैं। कुछ न कुछ कर ही लेंगे। आप तो मुझ जैसे तुच्छ सेवकों के बारे में सोचें और तत्काल भ्रष्ट बनाएँ। क्षणभर में इतना भ्रष्ट कर दें कि मंत्री-संत्री, दादा-दऊ, अफसर-चाकर सब जलें-भुनें और चुपके से पूछे - 'गुरू भ्रष्ट होने का कोई गुर मुझे भी बताओ न!'