गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

अण्णा के नाम प्रेमपत्र

...कि तुम नाराज मत होना


आदरणीय,

देशवासियों के साथ मैं भी कुछ दिन पहले ही आपके आंदोलन से फारिग हुआ हूँ । नारों से गला, मोमबत्तियों से हाथ और टोपी से सिर ख़ाली हुआ है। सीना ताने घूम रहा हूँ कि मैने सरकार को कदमों में झुका लिया है। सच पूछिये मैं दो कौड़ी का आदमी अरबों-खरबों की सरकार को चुटकी में मसलकर बहुत ख़ुश हूँराजधानियाँ और शहर क्रांति से अटे पड़े हैं। ऐसा लग रहा है जैसे जगह-जगह इंक़लाब की गुमटियाँ लग गई हों, आपकी सरकार बन गई हो, आज़ादी नामक किताब का दूसरा संस्करण हाथ लग गया हो। में अगर मैं न ख़ुश होता तो पड़ोसी मुझे सूमड़ा बोलते, ज्ञानी लोग अज्ञानी और देशप्रेमी मुझे देशद्रोही समझते। सामाजिक प्राणी होने के नाते इतने इल्ज़ाम झेलकर गुज़र-बशर करना नामुकिन था, अस्तु मैंने ख़ुश होने की परंपरा का निर्वाह किया।

आज आप देश के सबसे बड़े नायक हैं, आपने जंतर-मंतर में बैठकर मारण मंत्र सिद्घ किया है और उसे सरकार तथा भ्रष्टाचार पर एक साथ फेंका है। सरकार तिलमिलाने का टेलीफ़िल्म दिखा रही है, वह कराहों और विनम्रता के अलंकारों से सज गई है। ऐसे में आपसे सवाल पूछना महापातक जैसा लगता है। जैसे सवाल पूछकर मैं अपनी ही हत्या कर रहा हूँ , लेकिन क्या करूँ रहा नहीं जा रहा है। जिस तरह आप ६०-६२ साल से भ्रष्टाचारियों को क्षमा करते आए हैं, एक बार इस बालक को भी माफ करिएगा। सच बताऊँ अण्णा! ये सवाल भी मेरे नहीं हैं, बल्कि ये वह खुसुर-फुसुर है, जो मेरे आसपास चलती रहती है और जिसका जवाब देने के लिए मैं आपकी तरफ टकटकी लगाए देख रहा हूँ

सारा देश आपको दूसरा गाँधी कह रहा है, लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि आप कौन से दूसरे गाँधी हैं। एक अब्दुल गफ़्फार गाँधी थे, वे भी दूसरे वाले ही थे। इसके बाद इंदिरा-फिरोज गाँधी से लेकर राहुल और वरुण गाँधियों तक में दूसरा गाँधी बनने की गलाकाट प्रतिस्पर्धा है। चलिए आपको उपवास करने वाला और अहिंसा धरने वाला दूसरा गाँधी मान लेते हैं, फिर आपने भ्रष्टाचारियों को फाँसी देने वाली बात जो कही है, उसका क्या करें! क्या फाँसी भी अहिंसात्मक हो सकती है। बेचारे पहले गाँधी ने फाँसी देने की बात तो अंगरेज़ों के लिए भी नहीं कही। वे उनसे जीवनभर देश छोड़ने की विनती करते रहे। आज के काले क्या उनसे बड़े अंगरेज़ हैं या आप सत्याग्रह की प्रयोगशाला में कोई नया प्रयोग कर रहे हैं? आपने सुभाषचंद्र बोस की तरह लाल किले पर धावा बोलने की घोषणा भी कर दी।मुझ अज्ञानी को स्पष्ट करें कि क्या लाल किला भ्रष्टाचारियों का गढ़ है, जिस पर चढ़ाई करके आप देश को भ्रष्टाचार की ग़ुलामी से आज़ाद कर देंगे। क्या आपका आंदोलन गाँधी और भगतसिंह का कॉकटेल है। दोनों के मिश्रण से किसी नई क्रांति का कारखाना लगा रहे हैं क्या...?

हजारे साहब! देखते ही देखते आपके साथ लाखों लोग खड़े हो गए। दिन में रैलियों और रात में मोमबत्तियों की भीड़ लग गई।गाँधीजी ने चरखा चलाकर खादी का उद्घार किया था, आप चाहें तो मोमबत्ती का भला हो सकता है।खादी की तरह मोमबत्ती को आज़ादी की दूसरी लड़ाई का प्रतीक बना सकते हैं। वैसे भी जिस तरह से बिजली संकट बढ़ रहा है, आने वाले दिनों में ईमानदार मनुष्यों से ज़्यादा मोमबत्तियों की ज़रूरत पड़ेगी। एक बात चुपके से बताइगा कि आप अपने आंदोलन के लिए इतनी सुंदर और समझदार जनता कहाँ से लेकर आए थे। स्त्रियाँ मेनका और रंभा की तरह सुंदर थीं तो पुरुष कामदेव के अवतार। ऐसा लग रहा था कि आपका आंदोलन किसी स्वर्ग लोक में चल रहा है। टीवी पर ऐसे चेहरे देखकर न जाने कितनों का मन आंदोलन के लिए डोला होगा। लोगों को भले ये आईपीएल की तरह आंदोलन की चियर गर्ल लगें, लेकिन मुझे तो ये भ्रष्टाचार से तंग जनता लग रही थी, और बार-बार इस जनता का साथ देने का मन कर रहा था।

एक बात और आपके आंदोलन में पचास-साठ लाख रुपए जो खर्च हुए वह तो ईमानदारी के थे न! वह तो इधर-उधर के रास्तों से नहीं आया था। किसी भ्रष्ट ने तो दान नहीं दिया था न! आपने अपनी सारी जमीन गाँव के विकास के लिए दे दी। आपकी सेना के सेनापति भूषण द्वय खरबपति हैं, उन्होंने आंदोलन के लिए कुछ दान किया कि नहीं!

अण्णा साहब! कभी-कभी आप गाँधी से भी बड़े लगते हैं। बेचारे गाँधीजी बीस-पच्चीस साल तक संघर्ष करते रहे, फिर भी उन्हें इतनी लुभावनी जनता नहीं मिली। ऐसा कभी नहीं हुआ कि उनके आंदोलन से आंदोलनकारी भी खुश रहें और सरकार भी।आंदोलनकारी अपनी पीठ ठोंके और सरकार अपनी। आंदोलनकारी कहें कि जनता जीती और सरकार कहे कि लोकतंत्र। वे वर्षों संघर्ष करने के बाद भी संघर्ष का जश्न नहीं मना पाए। आप अपना कमाल देखिए कि पाँच दिन में ही आपने संघर्ष को उत्सव में बदल दिया। कहने वाले भले गाँधी को महान कहें, लेकिन अपुन तो नहीं कहने वाले। गाँधीजी ने जनता को सत्य-अहिंसा और ईमानदारी का पाठ पढ़ाकर उसे नाहक तंग किया।वे आज होते तो जनता को ही कहते कि जब आप रिश्वत नहीं दोगे तो लेने वाला कैसे लेगा। आपने कम से कम हमारा ख़्याल रखा और रिश्वत लेने वालों का ही कान ऐंठा कि जब तुम लोगे नहीं तो देने वाला देगा कैसे...?

धोनी की कप्तानी और सचिन के बल्ले की तरह आपका आंदोलन चल निकला है। मल्टीनेशनल कंपनियाँ आपकी तरफ आँखें फाड़े देख रही हैं। अपने उत्पाद के लिए आपको बेचना चाहती हैं। ईमानदार लोगों को भी ठंडा और गरम पीना पड़ता है। उन्हें लुभाने के लिए ईमानदार आदमी का ही विज्ञापन करना ज़रूरी है। अगर आप थोड़ा उस दिशा में सोचें तो आपके आंदोलन का ख़र्च भी निकल आएगा और मीडिया फ्रेंडली बने रहेंगे। राजनीतिक दल के लोग भी एक ऐसे प्रधानमंत्री की तलाश में हैं, जो ख़ुद ईमानदार हो और जिसकी आड़ में बेईमानी का कारोबार चलाया जा सके। इस तरह आपकी क्रांति ने बहुत सारे बंद दरवाज़े खोले हैं। गाँधीवाद में नए बाज़ार का दर्शन हुआ है। जो लोग वोट डालकर सरकार बदलने नहीं निकलते वे मोमबत्ती लेकर राजधानी में आग लगाने निकले हैं। मैं भी आपके साथ चार-पाँच दिनों तक इसीलिए लगा रहा ताकि बेइमानी पर ईमानदारी की बढ़िया पैकिंग चढ़ जाए, लोग मुझे भ्रष्ट करने में स्वयं को धन्य समझें और भ्रष्ट कहने में घबराएँ।

आपका ही
एक अनुयायी


-ओम द्विवेदी
( छवि गूगल से साभार )