रविवार, 17 नवंबर 2013

एक ख्वाब, जो 24 साल तक रहा पलकों पर

जैसे कोई बल्ले की क़लम से मैदान के भोजपत्र पर वेदों की ऋचाएं रचता रहा हो...छंद शास्त्र को अनगनित मात्रिक और वार्णिक छंद सौंपता रहा हो...बल्ले की वीणा पर राग-रागिनियां बजाता रहा हो...बाइस गज़ के बीच दौड़ते हुए कथक, कुचीपुड़ी और लावणी को शर्मिंदा करता रहा हो...जिसने बिना-अस्त्र के दिलों पर बादशाहत हासिल की हो...दुनियाभर के क्रिकेटप्रेमियों की धड़कन बनकर धड़कता रहा हो...जिसके हाथ में लकड़ी का छोटा-सा खिलौना तोप बनकर दुश्मनों के किले ध्वस्त करता रहा हो...जिसने शत्रुओं के खेल को अपने देश की आत्मा बना दी हो...जिसका सिर आसमान से टकराता हो, लेकिन पांव ज़मीन में धंसे हों...जिसके आगे एवरेस्ट छोटा दिखे, लेकिन जो कंकरों-पत्थरों को भी सम्मान दे...जिसके लिए पूरी धरती सचमुच में एक परिवार रही हो...जिसने खेल से इतनी मोहब्बत की हो कि रश्क़ करे ताजमहल...वह सचिन रमेश तेंडुलकर ख्वाब बनकर 24 साल तक टिका रहा पलकों पर।

इतिहास ने कितनी बार उसे सज़दा किया, भूगोल कितनी बार सिमटकर उसके सामने बित्तेभर का हो गया, उसकी गहराई नापते हुए समंदर कितनी बार पसीने-पसीने हुए। जाने कितनी सुनामियों और चक्रवातों का दंभ उसने अपने क़दमों से कुचला। जाने कितने युवाओं के जज़्बातों में वह जन्म लेता रहा बार-बार। उसके जैसे पुत्र को जन्म देने के लिए ललकती रहीं जाने कितनी माताओं की कोख। वह न जाने कितने सपनों में दाख़िल हुआ होगा राजकुमार बनकर। कितने कोरे कागज़ तरसे होंगे उसके एक हस्ताक्षर के लिए। जाने कितनी इच्छाओं को अतृप्त करते हुए वह बनता रहा सागर और दौड़ता रहा अपने 'चांद' की ओर। एक आदमी अपनी एकाग्रता, एकनिष्ठता, मेहनत और लगन से किस तरह बना इतना विराट कि उसके सामने हर ऊंचाई लगने लगी बौनी। अभ्यास ने लिखी सफलता की ऐसी अमिट कहानी, जिसे सुनकर सदियों बाद भी चौड़ा होता रहेगा समय का सीना। कृष्ण का विराट रूप केवल एक बार अर्जुन देखा था, सचिन का पूरी दुनिया ने देखा। बार-बार, कई बार।

क्रिकेट का यह 'भगवान' भले ही मुंबई वानखेड़े स्टेडियम में अंतिम विदाई ले रहा था, मैदान से बाहर जाते हुए गाल पर आंसुओं के मोती गिर रहे थे, दुनिया देख रही थी भावनाओं का महाकुंभ...लेकिन सिसक रहा था मेरा अपना मध्यप्रदेश भी। ग्वालियर का कैप्टन रूपसिंह स्टेडियम याद कर रहा था एकदिवसीय मैचों में लगाया गया इतिहास का पहला दोहरा शतक। इंदौर के नेहरू और होलकर स्टेडियम हिचकियां ले रहे थे उसकी छुअन और पदचाप को याद करके। जिस प्रदेश और उसके शहर इंदौर को पद्मभूषण कर्नल सीके नायडू और पद्मश्री मुश्ताक अली ने क्रिकेट खेलने और देखने का सलीक़ा सिखाया हो, वह भला कैसे न महसूस करता क्रिकेट के 'पैगंबर' की जुदाई का दर्द। जिसकी होलकर टीम ने जीते हों चार-चार रणजी खिताब, जिसके ख़ज़ाने से निकले हों नरेंद्र हिरवानी और अमय खुरसिया जैसे सितारे, वह कैसे भूलेगा कभी अपने आंगन में बिखरी क्रिकेट के 'कोहिनूर' की चमक। खेल के ऐसे रत्न को जो बन गया हो भारत रत्न।

समय की आंख बनकर देखें तो सगुण से निर्गुण हो गया सचिन का खेल, एक ऐसा मंत्र बन गया जिसका जाप कर आने वाली पीढ़िया सिद्ध करेंगी अपना हुनर, एक ऐसा गीत जो अवसाद को बनाएगा नया हौसला, एक ऐसी मिसाल जिसे बताकर फ़ख्र महसूस करेंगे लोग। कबीर ने बिना दाग-धब्बे के जैसे चदरिया ज्यों की त्यों रख दी थी, सचिन ने क्रिकेट की पोषाक रख दी निष्कलंक। भरा-पूरा साम्राज्य छोड़कर चल पड़े बुद्ध की राह पर। क्रिकेट को इतना मान और सम्मान दिलाया कि आने वाली पीढ़िया इस बात पर गर्व करेंगी कि उन्होंने उस खेल को चुना, जिसे सचिन खेला करते थे। आईंस्टीन होते तो बापू की तरह सचिन के लिए भी कोई ऐसा सूत्र वाक्य कहते कि, आने वाला ज़माना भरोसा नहीं करेगा कि हाड़-मांस का कोई आदमी क्रिकेट की साधना कर भगवान बन गया था।
 -ओम द्विवेदी
 नईदुनिया, 17.11.2013 



मंगलवार, 5 नवंबर 2013

अंधेरे के आंगन में रोशनी का महारास

सूरज के पहलू में जिस दीप की कोई औकात नहीं थी, अमावस की छाती पर चढ़कर उसी ने रात को औकात बता दी। सबसे काली रात को उजास का लिबास पहना दिया। मावस अपने तमाम षडयंत्रों के साथ देहरी के इर्द-गिर्द घूमती रही, घर में घुसने की कोशिश करती रही, लेकिन नन्हा-सा दीप इस कदर पहरेदारी करता रहा कि वह सेंध नहीं लगा पाई। अखंड दिखने वाली रात की सत्ता खंड-खंड हुई और दीप ने रोशनी का विजयनाद किया। 

शहर के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक यह दीप कहीं मिट्टी के रूप में था तो कहीं बिजली की लड़ियों की शक्ल में, कहीं सफेद वस्त्रों में दमकता हुआ तो कहीं बेहद रंगीन, कहीं महालक्ष्मी की आराधना करता हुआ तो कहीं पटाखों के साथ आसमान में नाचता हुआ, झोपड़ी में मंद-मंद मुस्काता हुआ तो बहुमंजिला इमारतों पर खिलखिलाता-अट्टहास करता हुआ, बुजुर्गों के चरणों में मत्था टेककर आशीर्वाद लेता हुआ तो बच्चों को गले लगाकर प्यार-दुलार देता हुआ, राजवाड़ा से इतिहास की रोशनी लुटाता हुआ तो मॉल से विश्व बाजार की जयकार करता हुआ। उजाले की सबसे छो
टी इकाई ने शहर के पोर-पोर को अपने रंग से रंग दिया।

दीयों ने सबसे काली रात को भी इतनी खूबसूरत बना दिया कि शरद की पूर्णिमा को भी जलन होने लगी। 
दीये की महाविजय पर पूनम के चांद ने संदेश भेजा-'मेरी मजबूरी है कि मैं नहीं आ सकता अमावस्या के घर। नहीं दे सकता उसे अपनी आभा। उसकी काली करतूतों से नहीं हैं कोई मेरा लेना-देना। डरता भी हूं कि मेरे दामन पर कहीं लग न जाए कालिख। दोनों के अलग-अलग रहते ही बचा हुआ है दोनों का वजूद। मेरी अनुपस्थिति में भी तुम चांद बनकर चमकते रहे धरती पर। जैसे मैं ही बैठ गया हूं मिट्टी के पात्र पर। तुम्हारे रहते किसी ने एक बार भी याद नहीं किया मुझे। सूरज ने चिठ्ठी लिखी-'मैंने कभी तुम्हें अपना वारिस नहीं बनाया, तुम्हारी बेजान-सी हस्ती देखकर मैं हंसता रहा बार-बार, मैं अपने उजाले पर ही इतराता रहा, घूमता रहा पूरब से पश्चिम तक, रोशनी बांटकर समझता रहा खुद को दानी-महादानी। आज तुम्हारी हैसियत देखकर टूट गया मेरा दंभ। आग की पोटली लिए तुम भस्म करते रहे अंधेरे को। जिस छोर पर मैं पहुंच भी नहीं सकता था, वहां तुमने कायम की अपनी सत्ता। अमावस के आंगन में भी तुमने बचा ली मेरी लाज। मेरी सोहबत में नहीं तैयार हो सकता दूसरा सूरज, लेकिन तुमने ज्योति से ज्योति जलाकर तैयार कर दी दीपों की अपराजेय सेना। आज मुझे समझ में आया कि तुम जैसे छोटे-छोटे सूरज को सम्मान देकर ही समर्थ और दीर्घजीवी हो सकता है बड़े सूरज का जनतंत्र। मैं लिख रहा हूं तुम्हारे नाम अपनी वसीयत। तारों ने ट्वीट किया-तुम्हारे साथ हम धरती पर भी करेंगे समूह नृत्य, गाएंगे उजाले का कोरस, कायम करेंगे वंचितों का साम्राज्य। तुम एक साथ कर सकते हो अंधेरे और उजाले का सम्मान।

शहर की दहलीज पर अगर दीया सोलह श्रृंगार करके आता है तो यह शहर भी उसके लिए लड़ता है तूफानों से। उसकी लौ की रक्षा में लगा रहा रहता है निरंतर। होलकरों ने इंदूर की देहरी पर विकास का जो दीप रखा 
था, इंदौर आज उसे मशाल में तब्दील कर चुका है। इंद्रेश्वर से लेकर खजराना के मंदिर तक आस्था के अकंपित दीप जगमगा रहे हैं। ज्वार के शाजे और आलनी भाजी के दीप पर 'स्वाद की लौ पूरे देश को लुभा रही है। अतिथियों के सत्कार के लिए यह जलता रहता है मद्धिम-मद्धिम। यह सेठ हुकमचंद के साथ धन के दीप जलाता है...डीडी देवलालीकर और एमएफ हुसैन के साथ रंगों के ...अमीर खां और लता मंगेशकर के साथ सुरों के...भवानी प्रसाद मिश्र और प्रभाकर माचवे के साथ साहित्य के...सीके नायडू और मुश्ताक अली के साथ खेल के...। यहां की गली का दीप बीआरटीएस बनकर दमकता है, तांगों का दीया हवाई जहाज बनकर आसमान की लंबाई नापता है। लगातार जलते हुए भी वह करता रहता है प्रार्थना कि मिल की चिमनियों की तरह खामोश न हो जाए एक दिन। 

-ओम द्विवेदी
नईदुनिया इंदौर , 04.11.13