मंगलवार, 5 नवंबर 2013

अंधेरे के आंगन में रोशनी का महारास

सूरज के पहलू में जिस दीप की कोई औकात नहीं थी, अमावस की छाती पर चढ़कर उसी ने रात को औकात बता दी। सबसे काली रात को उजास का लिबास पहना दिया। मावस अपने तमाम षडयंत्रों के साथ देहरी के इर्द-गिर्द घूमती रही, घर में घुसने की कोशिश करती रही, लेकिन नन्हा-सा दीप इस कदर पहरेदारी करता रहा कि वह सेंध नहीं लगा पाई। अखंड दिखने वाली रात की सत्ता खंड-खंड हुई और दीप ने रोशनी का विजयनाद किया। 

शहर के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक यह दीप कहीं मिट्टी के रूप में था तो कहीं बिजली की लड़ियों की शक्ल में, कहीं सफेद वस्त्रों में दमकता हुआ तो कहीं बेहद रंगीन, कहीं महालक्ष्मी की आराधना करता हुआ तो कहीं पटाखों के साथ आसमान में नाचता हुआ, झोपड़ी में मंद-मंद मुस्काता हुआ तो बहुमंजिला इमारतों पर खिलखिलाता-अट्टहास करता हुआ, बुजुर्गों के चरणों में मत्था टेककर आशीर्वाद लेता हुआ तो बच्चों को गले लगाकर प्यार-दुलार देता हुआ, राजवाड़ा से इतिहास की रोशनी लुटाता हुआ तो मॉल से विश्व बाजार की जयकार करता हुआ। उजाले की सबसे छो
टी इकाई ने शहर के पोर-पोर को अपने रंग से रंग दिया।

दीयों ने सबसे काली रात को भी इतनी खूबसूरत बना दिया कि शरद की पूर्णिमा को भी जलन होने लगी। 
दीये की महाविजय पर पूनम के चांद ने संदेश भेजा-'मेरी मजबूरी है कि मैं नहीं आ सकता अमावस्या के घर। नहीं दे सकता उसे अपनी आभा। उसकी काली करतूतों से नहीं हैं कोई मेरा लेना-देना। डरता भी हूं कि मेरे दामन पर कहीं लग न जाए कालिख। दोनों के अलग-अलग रहते ही बचा हुआ है दोनों का वजूद। मेरी अनुपस्थिति में भी तुम चांद बनकर चमकते रहे धरती पर। जैसे मैं ही बैठ गया हूं मिट्टी के पात्र पर। तुम्हारे रहते किसी ने एक बार भी याद नहीं किया मुझे। सूरज ने चिठ्ठी लिखी-'मैंने कभी तुम्हें अपना वारिस नहीं बनाया, तुम्हारी बेजान-सी हस्ती देखकर मैं हंसता रहा बार-बार, मैं अपने उजाले पर ही इतराता रहा, घूमता रहा पूरब से पश्चिम तक, रोशनी बांटकर समझता रहा खुद को दानी-महादानी। आज तुम्हारी हैसियत देखकर टूट गया मेरा दंभ। आग की पोटली लिए तुम भस्म करते रहे अंधेरे को। जिस छोर पर मैं पहुंच भी नहीं सकता था, वहां तुमने कायम की अपनी सत्ता। अमावस के आंगन में भी तुमने बचा ली मेरी लाज। मेरी सोहबत में नहीं तैयार हो सकता दूसरा सूरज, लेकिन तुमने ज्योति से ज्योति जलाकर तैयार कर दी दीपों की अपराजेय सेना। आज मुझे समझ में आया कि तुम जैसे छोटे-छोटे सूरज को सम्मान देकर ही समर्थ और दीर्घजीवी हो सकता है बड़े सूरज का जनतंत्र। मैं लिख रहा हूं तुम्हारे नाम अपनी वसीयत। तारों ने ट्वीट किया-तुम्हारे साथ हम धरती पर भी करेंगे समूह नृत्य, गाएंगे उजाले का कोरस, कायम करेंगे वंचितों का साम्राज्य। तुम एक साथ कर सकते हो अंधेरे और उजाले का सम्मान।

शहर की दहलीज पर अगर दीया सोलह श्रृंगार करके आता है तो यह शहर भी उसके लिए लड़ता है तूफानों से। उसकी लौ की रक्षा में लगा रहा रहता है निरंतर। होलकरों ने इंदूर की देहरी पर विकास का जो दीप रखा 
था, इंदौर आज उसे मशाल में तब्दील कर चुका है। इंद्रेश्वर से लेकर खजराना के मंदिर तक आस्था के अकंपित दीप जगमगा रहे हैं। ज्वार के शाजे और आलनी भाजी के दीप पर 'स्वाद की लौ पूरे देश को लुभा रही है। अतिथियों के सत्कार के लिए यह जलता रहता है मद्धिम-मद्धिम। यह सेठ हुकमचंद के साथ धन के दीप जलाता है...डीडी देवलालीकर और एमएफ हुसैन के साथ रंगों के ...अमीर खां और लता मंगेशकर के साथ सुरों के...भवानी प्रसाद मिश्र और प्रभाकर माचवे के साथ साहित्य के...सीके नायडू और मुश्ताक अली के साथ खेल के...। यहां की गली का दीप बीआरटीएस बनकर दमकता है, तांगों का दीया हवाई जहाज बनकर आसमान की लंबाई नापता है। लगातार जलते हुए भी वह करता रहता है प्रार्थना कि मिल की चिमनियों की तरह खामोश न हो जाए एक दिन। 

-ओम द्विवेदी
नईदुनिया इंदौर , 04.11.13 

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