शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

फिर किताब के पन्ने महके

फिर किताबों के नए पन्ने महके, फिर शैतानियाँ स्कूल की दहलीज़ में क़ैद हुईं, फिर मस्तियाँ होमवर्क की चिंता में मशगूल हुईं, फिर बस्ते नन्हों की पीठ पर सवार हुए, फिर पेंसल की धार तेज़ हुई, फिर फ़रमाइशों की सूची कुछ और लंबी हुई, फिर खिलौने थोड़ा उदास हुए, फिर मम्मी-पापा के डाँट की पोटली थोड़ी भारी हुई, फिर जुलाई की पहली तारीख़ आई। दो महीने की धमाचौकड़ी के बाद मासूमों की आँखों से फिर नीद उड़ेगी और सपनों में कभी गणित के सवाल तो कभी हिन्दी-अंगे्रजी के हिज्जे आएँगे। ईश की प्रार्थना में सभी के हाथ एकसाथ जुड़ेंगे और सुनहरे भविष्य की कामना करेंगे। गलियाँ सुबह-सुबह नन्हें बच्चों के साथ यूनीफार्म पहनेंगी। वैन और बसों में किलकारियों का श्रृंगार होगा, स्कूल की बेजान दीवारों में जान लौटेगी और वे तोतली भाषा में मासूमों से कविताएँ-कहानियाँ सुनेंगी। स्कूल के मैदान बच्चों की बारात देखकर इतराएँगे, कैम्पस के पेड़ पर बैठी तितली अपने दोस्तों को पाकर थोड़ी और रंगीन हो जाएगी।


ऐसी ही किसी तारीख़ पर राम अपने छोटे-छोटे भाइयों के साथ गुरु वशिष्ठ के घर गए होंगे और मर्यादा के साथ अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष की शिक्षा पाई होगी। कृष्ण ने गुरुकुल में संदीपनि के यहाँ प्रवेश किया होगा और धर्मनीति के साथ युद्घनीति की शिक्षा पाई होगी। वहीं सुदामा से दोस्ती हुई होगी, वहीं गोपियों से छेड़छाड़ करने का फितूर सूझा होगा। ऐसी ही किसी तिथि पर अर्जुन ने गुरु द्रोण से धनुर्विद्या सीखने की शुरुआत करी होगी, राजगुरु से दुत्कारे जाने के बाद एकलव्य ने धनुष-बाण को साधने का संकल्प लिया होगा, महर्षि वेदव्यास ने किसी गुरुकुल में ही वेद की ऋ चा रचने के सूत्र सीखे होंगे, पाणिनी ने व्याकरण और पतंजलि ने योग के गुर सीखे होंगे। किसी ऐसी ही तारीख़ पर मोहनदास स्कूल गए होंगे और बापू बनने का गुरुमंत्र मिला होगा, नरेन रामकृष्ण से मिलकर विवेकानंद बने होंगे, गीतांजलि के गीत और रवीन्द्र संगीत के आरोह-अवरोह किसी गुरु के सानिध्य में ही अंकुरे होंगे, जिसने रवीन्द्रनाथ टैगोर को गुरुदेव बनाया होगा। किसी गुरुकुल में ही शब्दों को कोख मिली होगी, अंक पैदा हुए होंगे, भाषा बड़ी हुई होगी। कल के ऐसे ही किसी मुहूर्त ने आज को इतना समृद्घ बनाया होगा।


ज्ञान और विज्ञान का जितना भंडार आज हमें मिला है, विकास के जिस ऊँचे ज़ीने पर आज हम खड़े हैं, वह अतीत की पाठशाला से निकला है। आज घर की देहरी लाँघकर जो छोटे पाँव स्कूल की सीढ़ी चढ़ेंगे वे कल तरक्की के शिखर का पता देंगे, जो पंख आज उड़ान भरेंगे वे कल आसमान की औकात बताएँगे। आज जो कंधे बस्ता लादकर घर से निकलेंगे वे कल देश और दुनिया का बोझ अपने कंधों पर लेकर दौड़ेंगे। आज ककहरा और अलिफ़-बेग पढ़ने वाले कल देश और दुनिया की तक़दीर लिखेंगे। आज जो रंगों से खेलेंगे वे कल आकाश में सतरंगा इंद्रधनुष बनाएँगे। आज के सपने कल की हकीक़त गढ़ेंगे।
-ओम द्विवेदी