शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

यहां पल-पल का पर्व है प्यार

ताजमहल की तरह हमारे शहर में मोहब्बत के मकबरे भले नहीं हों, लैला-मजनू, सीरी-फरहाद जैसी दीवानगी का पागलपन भले ही किस्से-कहानियां न बना हो, भले ही संत वेलेंटाइन जैसे किसी फकीर ने यहां इश्क के नारे नहीं लगाए हों...लेकिन महानगर की तरह दिखने वाले इस गांव के पोर-पोर में प्यार है, अपनापा है। यह प्रेम का अजब-गजब घाट है। यहां इश्क केवल महबूब और महबूबा के हुस्न की नक्काशी पर खत्म नहीं होता। यहां कबूतर प्रेम की चिठ्ठी केवल प्रेमिका के आंगन में गिराकर नहीं लौट आता। यहां प्रेम का दीया केवल एक देहरी पर जलकर रोशनी से अपना दामन नहीं झाड़ लेता। यह शहर प्रेम की पंगत है, नेह का भंडारा, इश्क की इबादतगाह, मोहब्बत का प्रकाशोत्सव।

यहां जिसे लुटाना आता है वह अपना खजाना बिना नफा-नुकसान के लुटाता है और जिसे लेना आता है वह अपने दामन को चादर की तरह फैला देता है सड़क पर। जिसे बांटना आता है वह घड़े में भरा अमृत बांटता जाता है और घड़ा भरता जाता है दोगुनी रफ्तार से। जिसे छकना आता है वह छकता जाता है लंगर की तरह। मियां गालिब की शायरी की तरह यहां इश्क कोई मुश्किल काम नहीं है, जो आग का दरिया हो और तैरने में जल जाने का खतरा। यहां तो प्यार पल-पल का पर्व है। मन का महोत्सव। रंगपंचमी पर रंगों का मेला है। रंगों के समंदर में डूबते जाओ और एक होते जाओ। यहां इश्क अनंत चतुर्दशी की झांकियां हैं, देखते जाओ और भूले-बिसरों से गले मिलते जाओ। यहां मोहब्बत हरतालिका तीज की रात है, राजवाड़े पर नाचते जाओ-झूमते जाओ। यहां प्रेम सराफे के ओटले पर स्वाद लुटाती रातें हैं, खाते जाओ और ऊंगलियां चाटते जाओ।


यहां इश्क इतना मासूम है कि बेटे को जब हिचकी आती है तो मां आंचल का एक धागा उसके सिर पर रख देती है, हिचकी गायब। इतना भोला है कि सूरज की किरणों को रूमाल में बांधकर ले जाना चाहता है रात तक। यहां प्यार इतना जवान है कि पूरी धरती को हथेली पर रखकर दौड़ लगाना चाहता है। इतना प्रौढ़ कि न तो तूफानों का खत पढ़कर डरता और बिजलियों की चमक से खौफजदा होता। यहां प्यार गर्मी में अमराई की छांव है तो ठंड में अलाव। महाकाल और ओंकार से आशीर्वाद मांगती आस्था है तो ईदगाह से गूंजती बरकत और खुशहाली की अजान। यहां प्यार मजहबों की दीवारें तोड़कर कभी खजराने में नाहरशाह वली की दरगाह पर गले मिलता है तो कभी दीवाली और ईद पर एक-दूसरे के घर भेजता है मिठास। यह शहर प्यार में किसी को एक गुल नही, पूरा गुलशन पेश करता है। उसके लिए एक लफ्ज नहीं, एक गीत नहीं, बल्कि पूरा शब्दकोश और महाकाव्य रचता है। यहां प्यार किसी एक देह के लिए जंजीर नहीं है, बल्कि समष्टि की मुक्ति का मार्ग है। एक धर्म है, एक अनुष्ठान, जो मुक्त करता है अपने ही बनाए तमाम कारागारों से। यह शहर मांडू से रानी रूपमती और बाज बहादुर के प्रेम के अफसाने भले सुनता हो, अवंतिका से भेजे गए बादलों पर लिखे कालिदास के प्रेम पत्र भले पढ़ता हो, लेकिन देवी अहिल्या के न्याय और भक्ति के सूत्र कभी नहीं भूलता। यहां की हर सांस प्यार का अनूठा राग है, खुशबूदार है।

-ओम द्विवेदी
 प्रेम दिवस पर नईदुनिया में 

कोई टिप्पणी नहीं: