सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

नमस्ते-3

शारदा माता के धाम में घंटा बजे-घड़ियाल बजे समझ में आता है। सुबह-शाम भक्तों की जयकार हो, लोग-बाग मैया की आरती गाएं, यह भी समझ में आता है। लेकिन चम्मच चहकें और प्लेट उनकी आरती उतारें, यह मैहर वालों के लिए नया है। उन्होंने झांझ-मजीरा बजाया, ढोल-डफली बजाई, हारमोनियम-बैंजो भी खूब बजाया... उस्ताद अलाउद्दीन के साथ देशभर में ‘बैंड’ भी बजा आए, लेकिन इन दिनों चम्मच बजाने की कला देखकर मैया के सारे भगत अचरज में हैं। जो चमचे सालों से पैकेट में धरे-धरे मुरचाए जा रहे थे, आले में पड़े-पड़े जिनके पेट की हड्डियां दिखाई देने लगी थीं... आजकल प्लेट पर उछले जा रहे हैं। खा-खा के इतने मुटा गए हैं कि प्लेट से बड़ा उनका पेट हो गया है। जिनके मुंह पर मक्खी नहीं उड़ती थी, आजकल रस टपकने लगा है। उनको ऐसा लगने लगा है कि उन्हीं से प्लेट की इज्जत है और उन्हीं से रसोर्इं की। वे रोटी, सब्जी, दाल, चावल, कढ़ी, फुलौरी आदि के समक्ष खड़े होकर ऐसा भाषण झाड़ते हैं, जैसे उन्हीं की बदौलत सारे ‘छप्पन भोग’ फल-फूल रहे हों। प्लेट पर खड़े होते ही गला फाड़ने लगते हैं- ‘भैया को जिता दो तो चूल्हे की रोटी को तंदूरी कर देंगे, दाल-भात को पिज्जा-बर्गर बना देंगे, कढ़ी को खीर से भी मीठी कर देंगे। प्लेट पर सोने का पानी चढ़वा देंगे। डालडे को शुद्ध घी में बदल देंगे। घर में किसी माता-बहन को चूल्हा नहीं फूंकना पड़ेगा। दिन निकलने से लेकर देर रात तक भंडारा चलेगा। जिसको जितना खाना है खाए, घर ले जाना है घर ले जाए। सुबह-शाम टैंकर में चाय भरवा दी जाएगी, लोटे में भरकर पीयो या बाल्टी में। अगर शौक फरमाएंगे तो ‘देशी-विदेशी’ का भी इंतजाम हो जाएगा। छोटा हो या बड़ा सबकी किस्मत बदल जाएगी। न सूखे का असर होगा, न बाढ़ का। भैया के पास जादू की छड़ी है। एक बार घुमा देंगे तो लोहा सोना हो जाएगा और कोयला हीरा।’
बेचारे गरीबों को समझ में नहीं आ रहा है कि इस चम्मच की सुनें कि उस चम्मच की। एक जाता है तो दूसरा आ धमकता है। एक सांपनाथ की प्रशंसा के पुल बांधकर जाता है तो दूसरा आता है और नागनाथ की तारीफों के फ्लाई ओवर टांग देता है। सांपनाथ का चम्मच कहता है- ‘इस क्षेत्र का सत्यानाश नागनाथ ने किया है। उसने और उसके चम्मचों ने मिलकर इस इलाके को दो कौड़ी का नहीं छोड़ा। अगर आपने उसको जिता दिया तो माता के इस धाम को निगल जाएगा। मंदिर में जितना चढ़ावा आएगा, बोरे में भरकर उठा ले जाएगा।’ नागनाथ का चम्मच चिल्लाता है-‘अरे वो खुद सांप है और उसने संपोले ही पाल रखे हैं। उन्होंने जिसे भी डसा है, वह पानी नहीं मांगता। अगर उन सांप-संपोलों की जोड़ी को जिताया तो भुगतोगे अगले चुनाव तक। अपने भैया नागनाथ को देख लो, ये कितने सीधे हैं। इनका केवल नाम ही नागनाथ है बाकी ये प्राणनाथ हैं। एक बार विधानसभा पहुंचा दो तो ये अपनी मणि निकालकर पूरे मैहर को रोशन करेंगे।’
चम्मचों के ‘अच्छे दिन’ देखकर प्लेट खामोश है। उसने थाली-कटोरी, कोपरी-परात, कड़ाही-कड़छुल, बटुआ-कूकर सबको वाट्सअप कर दिया है...जो वाट्सअप पर नहीं हैं, उन्हें मैसेज भेज दिया है कि चुनाव तक इनके मुंह न लगना। ये चम्मच जो कुछ भी बोलें चुपचाप सुन लेना, वरना आचार संहिता खत्म होते ही ये सबको घर के बाहर फिंकवा देंगे। इनका राज यहां से दिल्ली तक है। यहां का चम्मच वहां के चम्मच की छत्रछाया में है और वहां का चम्मच और ऊपर वाले चम्मच की कृपा में। इसीलिए फिलहाल प्लेट की बजाय चम्मच की जय-जय करो। जय-जय!!!
आज का इक्का
जले कड़ाही आग में, चिमटा भी हर बार।
चलती दस्तरख्वान पर, चम्मच की सरकार।।   -ओम द्विवेदी

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