रविवार, 13 नवंबर 2011

पेट्रोल की सेंचुरी


अब तो बहस इस बात को लेकर शुरू हो गई है कि पहले सचिन तेंदुलकर शतकों का शतक पूरा करेंगे कि पेट्रोल अपनी सेंचुरी मारेगा। दोनों की रफ्तार देखकर लोग दूसरी संभावना पर मुहर लगा रहे हैं। पेट्रोल के बढ़ते दाम देखकर ही लगता है कि अपना भारतवर्ष किस तेजी तरक्की की राह पर अग्रसर है। अखबारों में बनने वाला ग्राफ भ्रष्टाचार की तरह सीढ़ी-दर सीढ़ी ऊपर की ओर चढ़ता जा रहा है। पिछले भावों से जली जेब सिल भी नहीं पाती कि नए भाव उसे फिर से होलिका की तरह खाक कर देते हैं। गाड़ी की टंकी फुल होने का इंतजार करती रहती है और नए भाव उसे तले में पहुंचा देते हैं। गाड़ी गेराज से बाहर निकलने में लाज से पानी-पानी हो रही है।

सरकार कीमतें बढ़ाने का महत्व जानती है। उसे पता है कि दाम बढ़ने से सरकार का खजाना बढ़ेगा, विपक्ष को गला साफ करने का मौका मिलेगा और जनता को अपना गुस्सा दिखाने का सुअवसर प्राप्त होगा। अगर कीमतें स्थिर रहेंगी तो ये सारे अवसर जाते रहेंगे। अपनी सरकार आम आदमी की है इसलिए वह आम जन के बारे में सोचती है। दोपहिया वाहनों में सायकल अर्थात द्विचक्रवाहिनी आम आदमी की सवारी है। पिछले कुछ दिनों से नाना प्रकार की बाइकों ने उसे असहाय और अपंग बना दिया था। सरकार को लग रहा था कि आने वाले दिनों में सदाचार की तरह सायकलें भी विलुप्त हो जाएगी। अतः पेट्रोल के दाम बढ़ाकर उसकी रक्षा की जा सकती है। चार पहिया वाहनों में यही स्थिति बैलगाड़ी थी, सरकार ने उसकी रक्षा के लिए भी इस ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया है। सरकार अगर इसी तरह प्रयत्न करती रही तो बहुत जल्द इन दोनों को अपना खोया आत्म गौरव प्राप्त हो जाएगा। जो लोग नई ब्रांड की मोटरसायकलें और कारें बुक कर रहे हैं वे सतर्क हो जाए और सायकल और बैलगाड़ी के बारे में सोचें वरना फिर यह कहेंगे कि किसी ने सचेत नहीं किया था।

सरकार दंगे-फसादों से भी परेशान रहती है। बड़े-बड़े दंगों में बड़े बम फूटते हैं तो छोटे-छोटे दंगों में पेट्रोल बम से ही काम चलता है। सरकार छोटी-छोटी समस्याओं और छोटे-छोटे भ्रष्टाचार की तरह छोटे-छोटे दंगों पर भी कंट्रोल करना चाहती है। वह पेट्रोल की कीमतें इतना बढ़ा देना चाहती हैं कि कोई उसे खरीदने की हिम्मत ही नहीं कर सके। रहेगा बांस और बजेगी बांसुरी। पूरे देश में शांति रहेगी। जहां भी फूटेंगे बड़े बम फूटेंगे, छोटे नहीं। सरकार चाहती है कि देशवासियों का स्वास्थ्य अच्छा रहे। वे मोटापे और ह्दय रोग आदि बीमारियों से ग्रस्त हों इसलिए कुछ कीमतें बढ़ने की चिंता में दुबले हों और कुछ सायकल चलाकर। जो पसीना खून के साथ सूखता जा रहा है, वह चिकनी चमड़ी पर छलछला कर चमके। सरकार अपने बैंकों को भी बराबर पालना-पोसना चाहती है। गाड़ियां खरीदने के लिए कर्ज पहले से मुहैय्या करा रही है, वह चाहती है कि लोग तेल के लिए भी लोन लें। जिससे सड़कों पर नाना प्रकार की गाड़ियां भी दौड़ती रहें और बैंकों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहे।

बहुत सारे लोग सरकार को धमकाते हैं कि वे उससे अपना समर्थन वापस ले लेंगे, उसकी ईंट से ईंट बजा देंगे, अगले चुनावों में देख लेंगे वगैरह..वगैरह। लेकिन सरकार जानती है कि जिनके घर हर साल गाड़ियों की संख्या बढ़ रही है, बच्चे तो बच्चे कुत्ते तक कार में बैठकर घूमने निकलते हैं, जिनकी तोंद इंच दर इंच तरक्की कर रही है, जहां पैदल चलना पाप समझा जाता है और जो सुविधाओं के गुलाम हैं, वे भला सरकार का क्या उखाड़ लेंगे। इसलिए वह जनता को जड़ से उखाड़ने में लगी है।

-ओम द्विवेदी


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