रविवार, 12 मई 2013

मां ने रखा सहेजकर, सबको बिलकुल पास


भाड़े-बर्तन कर रहे, आपस में तकरार।
मां रहती है देखकर, अक्सर ही बीमार।।

कभी गली में झांकती, कभी रही है खांस।
बेटा घर से दूर है, मां की अटकी सांस।।

भाई दिखलाने लगे, जबसे अपनी पीठ।
एक-एककर हो गए, दुश्मन सारे ढीठ।।

मां ने रखा सहेजकर, सबको बिलकुल पास।
दो शब्दों को जिस तरह, जोड़े रखे समास।।

एक कोख के ख़ून में, घुले अगर तकरार।
नागफनी बनने लगे, आंगन की दीवार।।

मौला ने आदम दिया, आदम ने संसार।
मां ने मौला को दिया, एक बोसे में प्यार।।

बेटे ने जब-जब किया, छाती से संवाद।
मां तब-तब करती मिली, ममता का अनुवाद।।

दिखें भिखारी देवता, रंक दिखे सरकार।
जब माथे को चूमकर, माता बांटे प्यार।।

आंचल अंबर के सदृश, हृदय धरा का रूप।
सागर जैसा प्यार है, लोरी ठंड की धूप।।

सूरज चढ़े मुडेर पर, गरमी हो उद्दंड।
बनी बरफ की डली मां, घुल-घुल बांटे ठंड।।

जब बेटों को कष्ट दे, जग की कोई चीज़।
मां धागे में बांधती, ममता का ताबीज़।।

मां देहरी पर बैठकर, उमर रही है काट।
लड़कर बेटों ने किया, जबसे हिस्सा-बांट।।


  • ओम द्विवेदी 

ताना मारे ज़िंदगी से.... 

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