मै भी कितना उजबक था जो 'जाति' को बुराई मानता था और कभी-कभार उसके खिलाफ बोलकर खुद को भगतसिंह। गाँधी, लोहिया, मार्क्स आदि ने ऐसा दिमाग खराब कर दिया था कि 'जाति' होने से घिन होने लगी थी। पढ़-लिखकर खुद को आदमी मानने लगा था। मै कैसा बंदर हो गया था कि जाति-धर्म की सुंदर पोषाकें, स्वर्ण जड़ित राजमुकुट अपने ही हाथों नोचता रहता था। सभी जातियों का प्रिय बनने के चक्कर में अपनी ही जाति का तर्पण करने लगा था। भला हो सरकार का कि उसने डूबती नाव बचा ली, दीये को बुझने न दिया। मेरी जाति की महानता को नमस्कार करने सरकार स्वयं मेरे द्वार आ रही है। जवानी भले 'जाति' के हीनभाव से ग्रस्त रही हो, बुढ़ापा उसी पर इतराते हुए कटेगा। जिस जाति-धर्म में जन्म लिया आज उसे सीना तानकर बताने का समय आ गया है, आगे उस पर बलिदान होने का मौका भी मिलेगा। क्रांति के चक्कर में जिन्होंने अपने जातिनाम का खतना कर दिया है, वे भुगतेंगे। वैसे उन्होंने भुगतने के लिए अपनी जाति गया नहीं भेजी है, जन्म का प्रमाण पत्र निकालकर वे अपनी रक्तजाति सरकार को बताएँगे और आने वाले समय में उसका भी लाभार्जन करेंगे।
'जाति' गिनना किसी खब्ती का काम नहीं, बल्कि यह सरकार का सुनियोजित कार्यक्रम है। इसके दूरगामी लाभ हैं। यह सरकार द्वारा सचाई की स्वीकारोक्ति है। सरकार वर्षों तक जनतंत्र की स्थापना में लगी रही। वह दुनिया से कहती थी कि हम सबसे बड़े जनतंत्र हैं। इस जनतंत्र को बनाए रखने के लिए वह हर पाँच साल में 'जन' की गिनती करवाती थी। जन-जन को गिनकर जनगण गाती थी। सरकार ने सोचा कि जब जातियों के महासागर में जन की नाव डूब रही है तो उसकी गिनती ही क्यँू की जाए? जब जाति के जंगल में 'जन' नाम का डायनासोर विलुप्त हो रहा है तो फिर उसे खोजने में सरकारी खजाना क्यूँ खाली किया जाए? जन की बजाय जाति की गिनती ही करवा ली जाए। रही बात 'जनतंत्र' के नामकरण की तो उसे भी बॉम्बे से मुम्बई मद्रास से चेन्नई की तरह बदलकर 'जातितंत्र' कर दिया जाएगा। फिर भारतवासी गर्व से कह सकेंगे कि हम दुनिया के इकलौते और सबसे बड़े 'जातितंत्र' हैं।
जाति की गिनती हो जाने के बाद जरूरत के हिसाब से उनके प्रदेश बनाए जा सकेंगे। अलग-अलग जातियों के अलग-अलग प्रदेश। अपनी भाषा, अपना पहनावा। ठाकरे साहबान जैसा महाराष्ट्र को बनाना चाहते हैं तकरीबन वैसा ही हर प्रदेश होगा। उसी जाति का मुख्यमंत्री, उसी जाति के मंत्री-विधायक। कभी जब जातियों में युद्घ करवाना हो तो देशभर से सबको इकठ्ठा नहीं करना पड़ेगा। रथयात्रा वगैरह नहीं निकालनी पड़ेगी। मुख्यमंत्री सरकारी योजनाओं की तरह युद्घ की घोषणा करेंगे और जनता-जनार्दन टूट पड़ेगी। एक ही जाति के लोग एक प्रदेश में रहेंगे तो जातियों में भेदभाव जैसा कुछ नहीं होगा। रोटी-बेटी का नाता आसान रहेगा। एक ही गोत्र में इश्क करने की सजा अगर प्रेमी-प्रेमिकाओं को कभी-कभार मिल गई तो वे उसे भुगत लेंगे।
जातिप्रदेश जैसी बड़ी क्रांति न भी हो पाए तो भी पार्टियों को चुनाव में टिकट बाँटना आसान हो जाएगा। उम्मीदवार चुनने की मगजमारी नहीं करनी पड़ेगी और दूसरी जातियों के नेताओं को यह भी नहीं दिखाना पड़ेगा कि तुम्हारे नाम पर विचार चल रहा है। जाति की गिनती के बाद ब्राह्मणों के सूबे में पंडित, क्षत्रियों के सूबे में ठाकुर, पटेलों और यादवों के सूबे में पटेलों-यादवों को टिकट मिलेगी। लोकतंत्र के रहस्य रहस्य नहीं रहेंगे। जब ब्राह्मणों वाली सीट पर दुबे, तिवारी, मिसिर, क्षत्रियों की सीट पर सेंगर, परिहार बघेल, वैश्वों की सीट पर गुप्ता, नेमा, अग्रवाल, लालाओं की सीट पर खरे, श्रीवास्तव, भटनागर तथा पटेलों-यादवों की सीट पर फलां-फलां-फलां अपना सिर फोड़ेंगे तब समस्या पर पुनः विचार होगा। अगली गणना में पांडे में भी पांडे तलाशे जाएँगे। बाल की भी खाल निकाली जाएगी। बेचारे मतदाता के दिमाग से भ्रम के बादल छटेंगे और वह हर पाँच साल में (अगर बीच में कुरसी लकवाग्रस्त नहीं हुई तो) एक बार जाति के काम आ सकेगा।
जिस जाति की सरकार रहेगी, उस जाति को विशेष पैकेज दिया जाएगा। उसी को गरीब और बेरोजगार मानकर उसके उत्थान के लिए योजनाएँ लाई जाएँगी। गरीबी रेखा के नीचे उन्हीं को माना जाएगा। सड़कें उसी जाति के लिए बनाई जाएँगी। बसें और रेलें भी उन्हीं के लिए चलेंगी। सरकारी नौकरी में उन्हीं के लिए आरक्षण होगा। राशन की दुकानों में राशन भी सरकार वाली जाति को मिलेगा। सरकारी अस्पतालों में उन्हीं का इलाज होगा। अदालतें उन्हीं के पक्ष में फैसला सुनाएँगी। वही अखबारों में संपादक होंगे। मीडिया में खबरें भी उनकी ही दिखाई और छापी जाएँगी। सड़कों, पुलों और तमाम निर्माण कार्यों के ठेके सरकारी जाति वालों को ही मिलेंगे। दीगर जाति के लोग आम आदमी कहे जाएँगे और शत्रुदेश के निवासी माने जाएँगे। अगर धोखे से हिंद देश के जन माने गए तो नक्सली और उल्फाई होंगे।
सभी जातियों की सरकारों से लाभ लेने के चक्कर में जो लोग अपनी 'जाति' नहीं बताएँगे, वे जेल जाने के लिए तैयार रहें। सरकार से कुछ भी छिपाया तो छिप-छिपकर जीना पड़ेगा। सरकार महाराज मनु के पदचिन्हों पर चलते हुए वर्णव्यवस्था द्वितीय लागू करने जा रही है। कृतघ्न इस राष्ट्रवाद को जातिवाद की संज्ञा देकर उपेक्षित न करें। इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में व्यवधान डालना देशद्रोह माना जाएगा। अतः हिंद देश के सभी जन सरकार को अपनी जाति बताएँ और जब चुनाव का समय आए तो उसे उसकी औकात बताएँ।