हम दोनों हैं यार पड़ोसी ।
चाँद यहाँ भी वैसा ही है,
जैसा तेरे द्वार पड़ोसी।
एक- दूसरे के दुक्खों में,
रोये कितनी बार पड़ोसी।
अपनी-अपनी रूहों का हम,
करते हैं व्यापार पड़ोसी।
रोटी-बेटी के नातों पर,
मत रख रे अंगार पड़ोसी।
बम का मजहब बरबादी है,
दिल की बोली प्यार पड़ोसी।
हम लड़ते हैं चौराहे पर,
हँसता है संसार पड़ोसी।
आ मिल बैठें पंचायत में,
बन जायें परिवार पड़ोसी।
- ओम द्विवेदी