शनिवार, 15 मई 2010

सोना है भविष्य, रोना मत

आपको पता चला क्या, अपने मुख्यमंत्रीजी ने विधानसभा में सोना बनाने की मशीन लगवाई है! जिस पारस पत्थर के बारे में बड़े-बूढ़े बताया करते थे, शायद वही लगवाया है। अब वे पूरे प्रदेश को सोना बनाएँगे। उनके जो सहयोगी विधायक और मंत्री बनने के पहले लोहे का भंगार थे, वे अब चमचमाता सोना हो गए हैं। चेहरा भले भंगार जैसा दिखे, लेकिन चमक सोने की हो गई है। बीवी, बच्चे, पुरखे सभी सोने के हो गए हैं। पड़ोसी उन्हें देख-देख ललचाते हैं, अचरज करते हैं। वे तो दुश्मनों को भी सोना बनाने के लिए अंदर बुला रहे थे, लेकिन वे बाहर ही बैठै रहे। दुश्मन विधायकों को लग रहा था कि वे तो पहले से ही सोने के हैं, मुख्यमंत्री उन्हें अंदर बुलाकर कहीं फिर से लोहा न कर दें। भंगार सोना बन सकता है तो सोना भी तो भंगार बन सकता है।

इस पारस पत्थर के सहारे 'साहिब' प्रदेश का भविष्य स्वर्णिम करेंगे। सबसे पहले योजनाओं को सोना बनाएँगे। पारस छूने के बाद सारी योजनाएँ सोना हो जाएँगी। सोना योजनाओं के लिए लूटमार मचेगी और हर कोई चाहेगा कि वह इन योजनाओं को प्राप्त कर ले। सोने को ललकती बेचारी जनता जब इन योजनाओं के दर्शन करेगी तो वह धूल-धूसरित अपनी जिंदगी को धन्य-धन्य मानेगी। वह कोशिश करेगी कि इन योजनाओं के मंगलसूत्र बनवाकर लाडली लक्ष्मी को दे दे। इन योजनाओं से किसान धरती में अनाज की जगह सोना उगाएगा। रोजी-रोटी के लिए जूते का तल्ला घिसवाता नौजवान योजनाओं का कारोबार करेगा। भोपाल से लेकर मिसिरगवाँ खुर्द तक स्वर्णिम योजनाएँ इस तरह रथारूढ़ होकर चलेंगी कि रामराज्य धम्म से आ गिरेगा। जनता के सारे दुःख हिंद महासागर में फेंक दिए जाएँगे और सुख छप्पर तोड़-तोड़कर घरों में डाल दिए जाएँगे।

पारस पत्थर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद जो भी विधानसभा तक पहुँच जाएगा वह सोना होकर ही लौटेगा। अंधा-काना, लंगड़ा-लूला, गूँगा-बहरा भले रहे पर सोने का रहेगा। वह अपने जिन चमचों को चाहेगा सोने का कर देगा। पारस का प्रताप ऐसा होगा कि जिस सड़क पर मुसाफिर गिर-गिरकर अपना पाँव तुड़वाते हैं, वही सड़क ठेकेदार के लिए सोना उगलेगी। जिन नालियों की दुर्गन्ध से लोगों की घ्राणशक्ति जा रही है और वे घर में कम अस्पताल में अधिक रह रहे हैं, उन्हीं नालियों में ठेकेदार के लिए सोना बहेगा। जिन सरकारी दफ्तरों में गरीब की फाइल शतायु हो रही है और जो विभाग लगातार घाटे में हैं, वही अपने अफसरों पर सोना बरसाएँगे। कभी जब उनका लॉकर खुलेगा तो सोना आराम से सोता मिलेगा।

मुख्यमंत्रीजी की सदिच्छा है कि भविष्य में पूरा प्रदेश सोने का हो जाए। दीवारें सोने की, सड़कें सोने की, घर सोने के, नालियाँ सोने की, गाड़ियाँ सोने की, पेड़ सोने के और चिड़िया सोने की। जैसे कभी भारत सोने की चिड़िया था और उसे लूटने के लिए दूर देश से लुटेरे आया करते थे, वैसे ही अपने प्रदेश में भी आएँ। लूटने के लिए नहीं, देख-देख दंग होने। जब चारों तरफ सोना ही सोना दिखाई देने लगेगा तो अपना प्रदेश भी सोने की लंका जैसा हो जाएगा। जिसमें रावण, कुंभकरण, मेघनाद, खर और दूषण जैसे अपराजेय योद्घा रहने लगेंगे। विभीषण को लात मारकर बाहर कर दिया जाएगा। सोना है ही ऐसा कि राजा को ताकतवर कर देता है। रावण-कुंभकरण जैसा।

स्वर्णिम प्रदेश गढ़ने में संकल्पों के ७० सुनार काम करेंगे। कन्यादान से लेकर लेकर भू-दान तक मजे से होगा। अपने लिए सबसे स्वर्णिम संकल्प है कि अब राशन की दुकानें रोज खुलेंगी। मतलब यह कि अगर गाँठ में पैसा होगा तो अन्न खूब मिलेगा और जनता हाथ-मुँह एक कर सकेगी। डर लगता है कि रोज खुलने वाली दुकानों में अगर राशन भी सोने का मिलेगा, तो क्या होगा। बहरहाल सभी नेताओं, अफसरों और गुर्गों-मुर्गों को कह दिया गया है कि प्रदेश का भविष्य जहाँ भी मिले तो उसे पकड़कर लाओ और विधानसभा में रखे पारस पत्थर पर उसका सिर दे मारो। जब तक वह सोने का न हो जाए तब तक पटकते रहो, ताकि आने वाली पीढ़ी कह सके कि हमारा वर्तमान स्वर्णिम है। साँस रोककर देखिए कि अगले चुनाव तक कितने भविष्य स्वर्णिम होकर सदन से बाहर निकलते हैं। फिलहाल स्वर्णिम संकल्प के लिए मुख्यमंत्री की जय बोलिये और उनके दुश्मनों की पराजय।

शनिवार, 1 मई 2010

सूरज की मर्दानगी

सूरज आसमान से इस तरह गोली-बारी कर रहा है जैसे अमेरिका अफगानिस्तान और पाकिस्तान पर ड्रोन से हमला कर रहा हो। सड़क पर निकलना आग की बारिश में चलने जैसा लगता है। बाहर तो बाहर घर के भीतर भी सूरज इस कदर गर्मी भेज रहा है जैसे पकिस्तान हमारे यहाँ आतंकवादी भेजता है। सेना और खुफिया विभाग के कान भी खड़े नहीं हो पाते और वे हमारा गाल लाल कर चले जाते हैं। गर्मी भी उसी अंदाज में घुसपैठ कर रही है। एसी और कूलर सीमा पर तैनात हैं, लेकिन गर्मी है कि बदन से पसीना निचोड़े दे रही है। मंदिर में जूता चोरी चला जाए तो घर पहुँचते तक धरती पाँवों को ऐसे भूनती है जैसे हर बजट के बाद महँगाई। आह भरते रहें और राह चलते रहें। पुलिस कप्तान होता तो दस-बीस धारा लगाकर जेल में ठूस देता और सड़ाता तीन महीने। ज्यादा टुर्राता तो जिला बदर कर देता।

ऐसे भूखा-प्यासा निकलता है घर से कि खाना-पानी कम पड़ने लगता है। नदी-तालाब पी जाता है, बोरिंग-हैंडपंप पी जाता है, कुएँ-नल पी जाता है फिर भी प्यास नहीं बुझती। बिलकुल बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरह। इसकी प्यास कुछ-कुछ हमारे नेताओं और अफसरों जैसी भी है। वो ऊपर बैठकर धरती का पानी सोख रहा है और ये राजधानी में बैठकर जनता का खून। न धरती का पानी पीकर सूरज अघाता और न जनता का खून चूसकर सरकार। दोनों अंतिम बूँद स्वाद ग्रहण करने की में लगे हैं।

सारी समस्याओं की जड़ यह नामुराद सूरज ही है। अब देखिए न! सरकार के हुकुम पर बच्चे परीक्षा देने के बाद फिर से स्कूल जाने लगे थे, लेकिन इसने अपनी ताकत दिखाकर धारा-१४४ लगवा दी। सब बंद। इसने सरकार को पहले बताया भी नहीं कि हम गर्मियों में तपेंगे इसलिए पहले से इंतजाम कर लो, लू लगने से पहले बच्चों की छुट्टियाँ कर दो, उन्हें दो महीने चैन से जी लेने दो। अब सरकार कोई इतनी ज्ञानी तो नहीं है कि उसे पहले से पता रहे कि ठंडी के बाद गर्मी आएगी और गर्मी के बाद बारिश। उसे तो जैसा बताया जाता है वह मानती है और फटाफट योजनाएँ बनाती है। जैसे ही उसे गर्मी का पता चला छुट्टियाँ हो गईं। सूरज की जरा सी लापरवाही के कारण सरकार को कितना नुकसान हुआ, कितने आदेश निकालने पड़े। सचिवालय की मेहनत और जनता का धन दोनों अकारथ गया। स्कूल लगाओ...बच्चों को स्कूल लाओ...उन्हें किताबें बाँटो...पढ़ने की रुचि जगाओ...एक के बाद एक आदेश चल रहे थे कि सूरज तपने लगा और आदेश निकालना पड़ा कि सबकी छुट्टी कर दो। पहले से बता देता तो आदेशों और फाइलों को थकना नहीं पड़ता।

सूरज बीमारियों से मारे डाल रहा है। सरकार बच्चों को दलिया-दूध खिला रही है, दोपहर का भोजन दे रही है, जो लोग गरीबी रेखा पर चलते-चलते नीचे खिसक गए हैं, उन्हें गेहूँ-चावल दे रही है। रोटी छीनने वाले देश अमेरिका से मक्का मगा रही है तो बम फेंकने वाले देश पाकिस्तान से शकर। सबको खिलाने पर आमादा है। जिन्हें खाना नहीं दे पा रही उन्हें पौष्टिक आश्वासन दे रही है। सरकार के इस सारे किए-धरे पर सूरज दस मिनट में पानी फेर देता है। लोग खा-पीकर घर से बाहर से निकलते हैं और सूरज का चाटा खाकर अस्पताल पहुँच जाते हैं। डॉक्टर किसे-किसे बचाएँ। भला हो बजरंगवली का जो लोगों की साँस थामे हुए हैं। लोग बिस्तर पर पड़े-पड़े प्रार्थना कर रहे हैं कि प्रभु बाल्यकाल की तरह एक बार और सूरज को खा लो। हमारे प्राणों की रक्षा करो।

गरीबी, भुखमरी और बीमारी के लिए लोग नाहक ही सरकार को कोसते हैं। मैं तो कहता हूँ कि इसके लिए यह सूरज ही पूरी तरह जिम्मेदार है। सरकार को इसके खिलाफ जाँच आयोग बनाना चाहिए और जल्द से जल्द सजा तय करनी चाहिए। हो सके तो लाल किले पर फाँसी देने का शानदार आयोजन करना चाहिए। विपक्ष तो माल खाकर किसी तरह सरकार की रक्षा कर लेता है, लेकिन ये सूरज सब कुछ खा-पीकर भी सरकार की लुटिया डुबोने में लगा रहता है। अपनी मर्दानगी से कम सूरज की गर्मी से ही हम चीन को नंबर दो की कुरसी पर धकेलने वाले हैं। उसी की साजिश से हमारी आबादी फल-फूल रही है। लोग सूरज का गुस्सा चाँद उतारते हैं और आँगन में तारों की बारात उतर आती है। सरकार किसको-किसको दाना-पानी दे। सरकार माने या न माने सूरज की सौंपी आबादी ही सरकार की बरबादी का सबसे बड़ा कारण है। सरकार को इससे निपटना चाहिए। पर निपटे कैसे, उसी गर्मी से वोट भी तो पैदा होता है। जो आबादी मुसीबत का जहर है, वही वोट का अमृत भी तो है। फिर तो पूजना पड़ेगा सूरज को।

सुनने में आया है कि सूरज इसलिए गुस्से में है क्योंकि हम पेड़ काटकर घर और सड़क बना रहे हैं, पलँग-सोफा बनवा रहे हैं, लकड़ी जलाकर खाना बना रहे हैं, वगैरह..वगैरह। अरे भैया! पूरी धरती पर पेड़ ही रहेंगे तो क्या हम घर पेड़ पर बनाएँगे। आपको तो सड़क की जरूरत पड़ती नहीं। दिनभर में पैदल ही सारा आसमान नाप लेते हैं। आपके घर किसी के आने की हिम्मत भी नहीं कि पलँग-सोफा की जरूरत पड़े। आपके कोप से डरे तो फिर हम जीते जी मरे। सूरज बाबू ! सौ टके की बात सुनो-हमें अपने पाँव में कुल्हाड़ी मारना अच्छा लगता है। हम अगर धरती पर पेड़ों को रहने देंगे तो आपका गुस्सा भी नपुंसक हो जाएगा और सारे खुदगर्ज भस्म होने से बच जाएँगे। तुम्हीं तो एक मर्द हो जो नामर्दों को सबक सिखा सकते हो। अभी जितना गुस्साओगे, तीन महीने बाद धरती का आँचल भी तो उतना ही भिगाओगे।