जिस राम की पूजा आज हमारा देश करता है और जिस राम के बिना पूरा हिंदू समाज अधूरा है, वह राम गोस्वामी तुलसीदास की काव्य साधना से अवतरित हुआ है। जिस राम की प्राण प्रतिष्ठा महर्षि वाल्मीकि ने की थी उस राम को बाबा ने सजीव किया और जन-जन के ह्दय में बैठाया। जिस तरह बुद्घ ने अपने दर्शन को संस्कृत के पांडित्य से मुक्त किया और पाली के माध्यम से उसे देश की सीमाओं

जन्म से लेकर मृत्यु तक तुलसी का पूरा जीवन संघर्षों की कहानी है। पैदा होते ही आत्माराम दुबे और हुलसी ने मूल नक्षत्र के पातक से बचने के लिए उन्हें घूरे में फेंक दिया। जिस अछूत माँ ने उन्हें पाला, वह भी कुछ ही वर्षों में उन्हें छोड़कर स्वर्ग सिधार गई। पूरे गाँव ने दुत्कारा, जिसके बाद वे अपने प्रिय हनुमानजी की शरण में चले गए। चने के एक-एक दाने के लिए बंदरों की मार खाई फिर उन्हीं बंदरों ने उन्हें सहारा दिया। गुरु नरहरि की कृपा से अयोध्या और काशी में शास्त्रों का अध्ययन किया। रत्नावली से विवाह करने के बाद जीवन कुछ ढर्रे पर आने की उम्मीद थी, लेकिन रामभक्ति उन्हें सांसारिक सुखों से दूर ले गई। एक पुत्र हुआ, वह भी असमय काल के गाल में समा गया। कहते हैं उसी समय से उनका रत्नावली से भी मोहभंग हो गया और सब कुछ छोड़कर बाबा फिर वैरागी हो गए। अमर कृति रामचरित मानस लिखते समय भी उन्हें अपने समय के दुष्टों से लड़ना पड़ा। रामकथा सुनाकर पेट पालते रहे और मानस की पांडुलिपि लिए चित्रकूट, अयोध्या और काशी की परिक्रमा करते रहे। बाद में कवितावली, दोहावली, कृष्ण गीतावली, रामलला नहछू और विनय पत्रिका सहित बारह ग्रंथों की रचना की। दुनिया में ऐसा कोई कवि नहीं होगा जो अपनी तमाम बीमारियों को कविता से ठीक करे। बाबा ने कविता को दवाई की तरह इस्तेमाल किया। भूतों से डर लगा तो हनुमान चालीसा और बजरंग बाण रच दिया। बाँहों में तकलीफ हुई तो हनुमान बाहुक कह दिया। कालांतर में यही कविता भारतीय समाज की बीमारी को दूर करने के काम आई। आज भी मानस की चौपाइयाँ मंत्रों की तरह सिद्घ की जाती हैं और वे मंत्रों से ज़्यादा असर करती हैं।
हिंदी के तमाम लेखकों, कवियों और आलोचकों ने गोस्वामी तुलसीदास के कृतित्व को जिस तरह से स्वीकारा है, इससे उनके क़द का पता चलता है। पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते हैं-'उनका सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है। लोक और शास्त्र का समन्वय, गार्हस्थ्य और वैराग्य का समन्वय, भक्ति और ज्ञान का समन्वय, भाषा और संस्कृति का समन्वय, निर्गुण और सगुण का समन्वय, कथा और तत्वज्ञान का समन्वय, ब्राह्मण और चांडाल का समन्वय, पांडित्य और अपांडित्य का समन्वय-राम चरित मानस शुरू से आखिर तक समन्वय का काव्य है।' महाप्राण निराला तुलसीदास को कालिदास, व्यास, वाल्मीकि, होमर, गेटे और शेक्सपियर के समकक्ष रखकर उनके महत्व का आकलन करते हैं। छायावाद की एक और स्तंभ महादेवी वर्मा ने लिखा-'हमारा देश निराशा के गहन अंधकार में साधक, साहित्यकारों से ही आलोक पाता रहा है। जब तलवारों का पानी उतर गया, शंखों का घोष विलीन हो गया, तब भी तुलसी के कमंडल का पानी नहीं सूखा...आज भी जो समाज हमारे सामने है, वह तुलसीदास का निर्माण है। हम पौराणिक राम को नहीं जानते, तुलसीदास के राम को जानते हैं।' अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध ने कुछ यूँ कहा-
'कविता करके तुलसी न लसे
कविता लसी पा तुलसी की कला।'
बाबा तुम्हें प्रणाम!
-ओम द्विवेदी
( छवि गूगल से साभार )
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