भ्रष्टाचार मिटेगा जड़ से, मन मे जगी तमन्ना जी,
राह दिखाने आगे आए, अन्न त्याग के अन्ना जी!
बस पढ़ते-सुनते आए थे, आज़ादी का किस्सा हम,
पहली बार जिया है हमने, वो इतिहास का पन्ना जी!
शासन ने चीनी चटखारी और रस पिया प्रशासन ने,
और जनता की खातिर देखो, छोड़ा सूखा गन्ना जी!
पैंसठ साल गुज़ारे जिनके वादों की लोरी सुनके,
अब उनकी पद्चाप से भी, ये कान हुए चौकन्ना जी!
हे युवराज स्वयंभू, तुमसे देश की जनता पूछ रही,
इस निर्णय की घड़ी मे काहे, मौन हो धारे मुन्ना जी!
सोए देश मे अलख जगाने फिर से गाँधी जन्मा है,
होश मे आओ, जोश जगाओ, फिर ना बुद्धू बनना जी!
भ्रष्टाचार मिटेगा जड़ से, मन मे जगी तमन्ना जी,
राह दिखाने आगे आए, अन्न त्याग के अन्ना जी!
- अभिषेक " अमन"
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