तेरी मीनार तेरा गुम्बद देख लिया।
तेरी पूजा, अज़ान, सबद देख लिया।
उठा के एड़ी न ऊंचाई का अहसास करा
तेरी बातों से तेरा कद देख लिया।
तेरी ताक़त का बहुत शोर था लेकिन,
तुझे भीड़ में तन्हा अदद देख लिया।
तेरा बाज़ार जिस दुनिया को गांव कहता है,
वहां देहरी-देहरी पे सरहद देख लिया।
जिसे मिलती है मुफ़लिस की बद्दुआ हरदम,
वो कुर्सी, वो ऊंचा पद देख लिया।
(ताना मारे ज़िंदगी से )
- ओम द्विवेदी
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