
क्रिकेट के इस नए शिखर पुरुष की हर अदा कुर्बान होने लायक। बल्ले से निकलकर चौके खिलखिला रहे थे, छक्के ठहाके मार रहे थे। एक-एक और दो-दो रनों की खुशी का भी पारावार नहीं था। होलकर स्टेडियम में वह गेंद पर जब-जब टूटा तो कहर बनकर ही टूटा। फौलादी प्रहार के बाद गेंद न केवल सीमा रेखा के पार गई, बल्कि उसने इस बात का जश्न भी मनाया कि उसका कचूमर नहीं निकला। स्टेडियम में बैठे हजारों दर्शकों और टीवी पर चिपकी करोड़ों जोड़ी क्रिकेट प्रेमी आंखों को जैसे मोक्ष मिल गया। वे धन्य हुईं। जिसने भी यह पारी देखी वह इतिहास का ऐसा गवाह बन गया, जो आने वाली पीढ़ियों से कहेगा कि हां मैं उन पलों में मौजूद था। वह अपने बच्चों से कहेगा कि इंदौर में दिसंबर की आठ तारीख को नजफगढ़ के नवाब का तांडव देखने के लिए वक्त ठहर गया था। खजराना से प्रथम पूज्य भगवान गणपति आशीष की वर्षा कर रहे थे तो उज्जैन से भगवान महाकाल व ओंकारेश्वर से भगवान भोलेनाथ उस तूफान को और गति दे रहे थे। उस तूफान के ठहरने के पहले क्रिकेट के कीर्तिमान अपना श्रृंगार कर रहे थे तो जाने कितने दंभ टूट-टूटकर बिखर रहे थे। मार्गशीर्ष की गुलाबी ठंड पसीने-पसीने हो रही थी।
उम्मीद कहिए या आशंका, रही तो सचिन तेंडुल्कर को भी होगी कि एक दिन उनके कीर्तिमान को उन्हीं का साथी और हमशक्ल तोड़ेगा, लेकिन वह हिंदुस्तान के दिल में तोड़ेगा, इसका अंदाजा सचिन को क्या दुनिया में किसी को नहीं रहा होगा। हिंदुस्तान का दिल जब किसी पर फिदा होता है तो इसी तरह होता है। ग्वालियर में सचिन को जब दोहरे शतक का कीर्तिमान दिया था तभी से उसने सोच रखा था कि दूसरे लाडले को भी तोहफा जरूर देगा। कमाल देखिए कि प्रदेश की धरती पर अगला ही मैच हुआ और टेस्ट में दो-दो तिहरे शतक बनाने वाले वीर को इसने दोहरे शतक का भी महावीर बना दिया। आपने इसकी सदाएं नहीं सुनीं-अगर लिटिल मास्टर यहां आए होते तो यह धरती उन्हें महाशतक भी सौंपती। मालवा ने अपने दुलारों को अगर पलकों पर बैठाया तो उन्होंने भी इसका मान रखा। शबे मालवा की तरह उसके आंचल में खेला गया दिन-रात का पहला ही मैच यादगार हो गया। इसने हीरे को कोहिनूर बना दिया है।
-ओम द्विवेदी
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