मंगलवार, 22 सितंबर 2009

माँ- भक्त संवाद- एक

-भक्तों तुम लोग क्यों नाच-गा रहे हो?-माँ आज हम लोगों का दिल प्रसन्न है, हम नहीं नाच रहे हैं, मन ही मयूर है।
-मन मयूर होने की कोई खास वजह भक्तों?-नवरात्रि है तो आपके चरणों में लोट रहे हैं।
-इसके पहले गणेशोत्सव में भी आप लोगों के नृत्य से सड़कें भरी थीं, लोगों का सड़कों पर चलना मुश्किल था।
-तब गणेशजी के चरणों में लोट रहे थे।
-इसके पहले मालामालजी के चुनाव में भी तो खूब झूम-झूमकर नाचे थे।
-तब उनके चरणों में लोट रहे थे। उनकी वजह से ही तो सारा लाव-लश्कर है माँ। आपकी मूर्ति और इस आयोजन के लिए भी तो वही पैसे खर्च करते हैं। धन को हाथ का मैल मानकर चार-छः लाख रुपए झाड़ देते हैं।
-जब अमेरिका से विश्वसम्राट आए थे तब?
-माँ! उनके चरणों में तो सारी दुनिया लोट रही है, फिर अपनी क्या औकात? नाचें-गाएँ नहीं, उनके चरणों में लोटें नहीं तो अपने सम्राट की छवि काली कोठरी में चली जाएगी। अमेरिका से माल आना बंद हो जाएगा और वे हमें महँगाई का एक और शाप दे देंगे। हम लोग घर बैठे मर जाएँगे।
-अच्छा भक्तों! यह बताओ, तुम लोग किसके चरणों में नहीं लोटते?
-माँ! आप तो सब जानती हैं, फिर भी बता दूँ। जो भी अपने को धन-दौलत दे सके, नौकरी-चाकरी दे सके, ट्रांसफर-प्रमोशन करवा सके, छोटे-मोटे चुनाव का टिकट दिलवा सके। उसके चरण में हमारा आचरण समर्पित है। दुनिया में कोई चरण हमारे लिए अछूत नहीं है। अपने चरण में लोट नहीं सकते इसलिए वह बचा हुआ है।


(बेटों के जवाब पर माँ को शर्म जैसा कुछ महसूस हुआ और आगे की सारी जिज्ञासाओं को उन्होंने उसी तरह पचा लिया, जैसे कभी शिव ने जहर पचाया होगा। उन्होंने यह मान लिया कि उन्हें बेटों के बारे में सब पता है।)