रोटी बनकर खा गया, बेहतर कल को
काल।
बड़ी भूख है कर रही, छोटी भूख
हलाल।।
प्रजा पुरानी कर रही, राजा को
बदनाम।
उसे बदलकर मिलेगा, कुरसी पर आराम।।
उसे बदलकर मिलेगा, कुरसी पर आराम।।
एक साथ दोनों गिरे, रुपया और
चरित्र।
एक-दूसरे से हुए, दोनों खूब पवित्र।।
एक-दूसरे से हुए, दोनों खूब पवित्र।।
छाछ बताता स्वयं को, कभी-कभी
श्रीखंड।
बड़े मंच पर बड़ों का, दिखता है पाखंड।।
बड़े मंच पर बड़ों का, दिखता है पाखंड।।
देख सियासी मनचले, लोकतंत्र
हैरान।
जनता थाती दे किसे, जब सारे हैवान।।
जनता थाती दे किसे, जब सारे हैवान।।
अब राजा के साथ है, जो थी कल तक रंक।
देख रसोई डर रही, सब्ज़ी का आतंक।।
देख रसोई डर रही, सब्ज़ी का आतंक।।
सब्ज़ी करने लग गई, सोने का
सम्मान।
थाली को भी चाहिए, शासन से अनुदान।।
थाली को भी चाहिए, शासन से अनुदान।।
संसद से बढ़कर यहाँ, उसके
पहरेदार।
सिंहासन पर बैठकर, करें नए व्यभिचार।।
सिंहासन पर बैठकर, करें नए व्यभिचार।।
नई उमर को नया ही, पढ़ा रहे हैं
पाठ।
जो जी-जी करते हुए, पार कर गए साठ।।
जो जी-जी करते हुए, पार कर गए साठ।।
किसका सुमिरन अब करूं, किसकी करूं
तलाश।
कैसे जाऊं उस गली, जहां अनगिनत लाश।।
कैसे जाऊं उस गली, जहां अनगिनत लाश।।
दिल्ली-संसद में हुआ, गुपचुप कुछ
अनुबंध।
टूट गया है गाँव से, बिलकुल ही संबंध।।
टूट गया है गाँव से, बिलकुल ही संबंध।।
जाने कैसा कर रहे, वैद्यराज
उपचार।
उनकी सेहत बन रही, मैं क्रमशः बीमार।।
उनकी सेहत बन रही, मैं क्रमशः बीमार।।
-ओम द्विवेदी
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