आसमान इसे देखकर कोफ्त करता होगा कि वह इतना ऊंचा क्यों नहीं है, सागर इस बात पर रंज करता होगा कि वह इतना गहरा क्यों नहीं है, धरती इस बात को लेकर परेशान होती होगी कि कोई उससे ज्यादा उम्मीदों के बोझ कैसे उठा लेता है, तूफान अकेले में इस बात पर शर्मसार होते होंगे कि वे उसे डिगा क्यों नहीं पाते, देवताओं को लगता होगा कि उनकी रचना उनसे बड़ी कैसे हो गई। पूरब से सूरज इसकी रोशनी देखकर चमकता होगा, पश्चिम से चांद इसकी चांदनी देखता होगा, उत्तर से हिमालय इसकी ऊंचाई नापता होगा तो दक्षिण से सागर इसकी लहरें गिनता होगा। क्रिकेट इस बात पर खुश होता होगा कि उसने इसे खेला है। बल्ला जब कभी अपना इतिहास लिखेगा तो इसी को अपना खुदा कहेगा, गेंदें जब कभी अपने कत्ल की गवाही देंगी तो इसी का नाम लेंगी। भूगोल कहेगा कि एक था लिटिल मास्टर जिसने वामन की तरह तीन डग में नाप लिया था उसे। शतक तो चीख-चीखकर कहेंगे कि हां मुझे सचिन ने शतायु किया। मराठी साहित्यकार रमेश तेडुल्कर के सुपुत्र और गुरु रमाकांत आचरेकर के शिष्य सचिन तेडुल्कर का महाशतक देखकर स्वयं कीर्तिमान गदगद होंगे। वानखेड़े से लेकर लार्ड्स तक के स्टेडियमों की छाती चौड़ी हो गई होगी। स्वर्ग में बैठे क्रिकेट के पूर्वज खड़े होकर ताली बजा रहे होंगे कि अंग्रेजों के खेल को एक हिंदुस्तानी ने मोक्ष प्रदान किया है।
दुनिया जिसे महाशतक कहती है वह एक ऐसे युवक की साधना है, जो गृहस्थ होकर भी एक सन्यासी की तरह दो दशक से मैदान पर अडिग है, जिसकी रगों में खून से ज्यादा खेल दौड़ता है, जिसकी भूख बिना रनों के तृप्त नहीं होती, जिसकी नींद में क्रिकेट के सपने आते हैं, जिसे अपनी परछाई देखकर अपना कद बढ़ाने का हुनर आता है, जिसे दुनिया की आलोचनाएं पका-पकाकर पक्का करती हैं, जो तारीफों के भंवर में फंसकर डूब नहीं जाता, जिसका हर कदम एक नई मंजिल है, जो देश के करोड़ों लोगों की धड़कन है। सत्तर के दशक में पैदा हुई जिस पीढ़ी ने क्रिकेट से दिल लगाया है, ऐसा हो ही नहीं सकता कि वह सचिन का आशिक, सचिन का मुरीद न रहा हो। देखने वाले तो देखने वाले, क्रिकेट सीखने वालों ने भी इसे ही देखकर खेलना सीखा है। यह महज इत्तफाक नहीं है कि सचिन के साथ खेलने वाले दुनिया के बेहतरीन क्रिकेटर भी उनकी प्रतिभा और समर्पण का लोहा मानते हैं। विकेट के सामने उनकी चपलता, चंचलता और तकनीक देखकर दांतों तले उंगली दबाते हैं।
सच तो यह है कि जैसे जौहरी हीरे को तराशकर कोहिनूर बनाता है, जैसे मिट्टी को चाक पर घुमा-घुमाकर कुम्हार घड़े में तब्दील करता है, जैसे सालों संग्राम करके कोई मुल्क आजादी हासिल करता है, जैसे कोई नदी पहाड़ों को काटकर सागर का स्पर्श करती है, सचिन ने उसी तरह अपना यह मुकाम हासिल किया है। इस महाशतक में कितने ही प्रशंसकों की दुआएं हैं, न जाने कितनी प्रार्थनाएं हैं, न जाने कितनी उम्मीदें और कितनी कल्पनाएं हैं। सौवें शतक के इंतजार में जब शंकाओं-कुशंकाओं की अमावस और काली होने लगी थी, तब भी सचिन ने उम्मीदों की ज्योति जलाई और वह चमत्कार भी कर दिया, जिसके लिए वर्षों से कीर्तिमानों के पन्ने ललक रहे थे। आईंस्टीन के शब्दकोष से सचिन के लिए अगर कुछ शब्द उधार लिए जाएं तो ठीक से कहा जा सकता है कि आने वाली पीढ़ियां इस बात पर यकीन नहीं करेंगी कि धरती पर कभी हांड-मांस का कोई ऐसा पुतला भी था।
-ओम द्विवेदी
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