बुधवार, 26 अगस्त 2009

तम्बाकू का दर्शनशास्त्र

उस दिन तंबाकू निषेध दिवस था। एक दार्शनिक किस्म के तंबाकू सेवक से मुलाकात हो गई। फिर क्या था? लगा तंबाकू का दर्शन समझा जाए। इधर से सवालों की शुरुआत हुई कि उधर से झमाझम जवाबी बारिश होने लगी।

'आप दिनभर तंबाकू या गुटका क्यों चबाते रहते हैं?'
'अमीर गरीब को चबा रहा है...नेता वोटर को चबा रहा है...अमेरिका सारी दुनिया को चबा रहा है...दिल्ली की कुरसी भोपाल की कुरसी को, भोपाल की इंदौर की कुरसी को और इंदौर की सागरपैसा को चबा रही है...डॉक्टर मरीज को चबा रहा है...अदालतें न्याय चबा रही हैं...हिंगलिश हिंदी चबा रही है। मैं तो केवल खैनी चबा रहा हूँ।'

'आप तो जानते हैं कि तंबाकू खाने से कैंसर होता है?'
'गरीबी किसी कैंसर से कम है क्या? कैंसर से तो केवल कैंसर का मरीज मरता है, गरीबी तो पूरे खानदान को मारती है। बाप का इलाज नहीं होता, बेटा स्कूल नहीं जाता, बहन की शादी नहीं होती। जब गरीबी का ब्लड कैंसर अपुन का कुछ नहीं बिगाड़ पाया तो तंबाकू क्या उखाड़ लेगी?'

'आप सार्वजनिक स्थलों पर भी धूम्रपान करते हैं, यह अपराध है। इस पर आपको सजा हो सकती है, जुर्माना लग सकता है।'
'सरकार सार्वजनिक स्थलों पर गुटखे का कारखाना चला रही है तो अपराध नहीं है, दुकानदार उसे सार्वजनिक स्थलों पर बेच रहे हैं यह भी अपराध नहीं है, मेरा एक कश अपराध हो गया। सरकार मौत बेचे तो दाता और हम खरीदें तो अपराधी। रही बात जुर्माने की तो मुझे नशेड़ी बनाने के लिए मैं सरकार पर जुर्माना लगा रहा हूँ। या तो वह मुझे जुर्माने की राशि अदा करे या गुटखे को पाचक चूर्ण का दर्जा प्रदान करे।'

'आप विद्वान हैं इसका कुप्रभाव जानते हैं, इसके बाद भी इसका सेवन करते हैं।'
'कौन नहीं जानता कि भ्रष्टाचार बुरा है। फिर भी बंद हुआ क्या? देने वाले और लेने वाले में कौन नहीं जानता कि रिश्वतखोरी बुरी चीज है फिर भी बंद हुई क्या? झूठ बोलना पाप है यह कौन नहीं जानता फिर भी दुनिया में झुट्ठों की तादात कम हुई क्या? जानकारी से कुछ नहीं होता। जानकारी किसी बीमारी का कोई इलाज नहीं है।'

'फिर लगता है कि आपके भीतर संकल्पशक्ति की कमी है।'
'संकल्प कोई शक्ति नहीं है। वह भी एक व्यसन है। इस देश का काम तंबाकू के व्यसन के बिना तो चल जाएगा, लेकिन संकल्पों के व्यसन के बिना नहीं चलेगा। भीष्म पितामह के जमाने से हम संकल्प व्यसनी हैं। हमने साझा रूप से ब्रह्मचर्य का संकल्प लिया और दिन दूनी-रात चौगुनी रफ्तार से आबादी बढ़ाई, गरीबी हटाने का संकल्प लिया और बेगारों की भरमार हो गई, समाजवाद का संकल्प लिया और पूंजीवाद आ धमका। संकल्प का नशा भी तंबाकू की तरह दिमाग में सुरसुरी पैदा करने के लिए किया जाता है। खैनी, बीड़ी, गुटखे का नशा क्षणिक होता है इसलिए उसका सेवन जल्दी-जल्दी करना पड़ता है, लेकिन संकल्प का सेवन एक बार कर लिया जाए तो साल-छः महीने तक काम करता है। कभी-कभी तो पूरे पाँच साल रहता है। संकल्प के नशे को सामाजिक मान्यता प्राप्त है इसलिए उसके नशेड़ी पूजे जाते हैं। मैं तो कहता हूँ कि तंबाकू निषेध दिवस की जगह संकल्प निषेध दिवस मनाना चाहिए।'

'कुल मिलाकर आप तंबाकू नहीं छोड़ेंगे।'
'मैं आपकी तरह देशद्रोही नहीं हूँ। मैं एक चुटकी तंबाकू खाकर इस देश के तंबाकू उद्योग को आर्थिक सहयोग दे रहा हूँ। रात को एक पैग दारू पीकर इस देश का आबकारी विभाग चला रहा हूँ। मैं मौत की कीमत पर भी देश की तरक्की चाहता हूँ। यह देश कभी सोने की चिड़िया था। आज हम दोबारा इसे सोने की चिड़िया नहीं बना सकते, सोने का पानी तो चढ़ा ही सकते हैं।'

'अच्छा आप बता दें आपको तंबाकू के नशे में कोई बुराई नहीं दिखती?'
'तंबाकू का नशा दुनिया का सबसे छोटा नशा है। आठ आने और एक रुपए का नशा। तंबाकू प्रेम सबसे छोटे आदमी से प्रेम करने जैसा है। यह सामाजिक अपराध नहीं। दौलत के नशे, कुरसी के नशे, ताकते के नशे और मजहब के नशे के आगे इसकी भला क्या औकात? आप करोड़ों छोड़कर अठन्नी लूट रहे हैं।'

'देखिए! आगे मैं आपके किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकता, क्योंकि मुझे बहुत जोर की तलब लगी है और खैनी खाने के बाद मुँह खोलना संभव नहीं। अस्सी चुटकी और नब्बे ताल का बुरादा आप भी मुँह में डालिए और प्रश्नों की बजाय खैनी की जुगाली कीजिए।'

(साहित्यिक पत्रिका 'वीणा' के अपैल अंक में प्रकाशित)

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