सूरज ने जबसे किया, फागुन को उद्दंड।
पानी-पानी लाज से, हुई बेचारी ठंड॥
गेर खेलने सड़क पर, निकले सातों रंग।
फागुन हंसता देखकर, चांद संवारे अंग॥
आंखों-आखों सज गया, फागुन का बाजार।
दिल वाले करने लगे, सपनों का व्यापार॥
सपने सब टेसू हुए, केसर-केसर रूप।
अंग-अग फागुन हुआ, बदन उलीचे धूप॥
ढोल, मजीरे, मसखरी, रंग, गीत, सत्कार।
प्रेम पंथ में आज भी, फागुन है त्योहार॥
आंखें प्यासी हो रहीं, तन-मन तपे बुखार।
फागुन के बीमार का, फागुन ही उपचार॥
कली-कली का रूप अब, आंखें रहीं सहेज।
फागुन चुपके से बना, सपनों का रंगरेज॥
बहकी-बहकी-सी लगे, हवा छानकर भंग।
गाल गुलाबी देखकर, बहक रहे हैं रंग॥
अपने कर पाते नहीं, अपनों की पहचान।
रंगों ने जबसे किया, सबको एक समान॥
अचरज करते ही मिले, सारे वैद्य-हकीम।
फागुन से मिलकर गले, मीठी हो गई नीम॥
धरती से आकाश तक, पुख्ता सभी प्रबंध।
तितली ने फिर भी किया, फूलों से संबंध॥
नुक्कड़-नुक्कड़ पर लगी, रंगों की चौपाल।
गाल शिकायत कर रहे, छेड़े हमे गुलाल॥
बहते पानी में नहीं, ठहरे कोई रंग।
ठहरा पानी ही करे, रंगों से सत्संग॥
फागुन करे गुलाल से, नए तरह की जंग॥
जंगल की परजा सभी, देख-देखकर दंग।
गीदड़ पाता जा रहा, शेर सरीखा रंग॥
रंग तोड़ने लग गए, फागुन का कानून।
लाल-लाल पानी हुआ, काला-काला खून॥
सपने, आंखें, भूख सब, हैं बाजार अधीन।
रंग, अबीर, गुलाल से, कैसे हों रंगीन॥
राजा-परजा साथ में, मिलकर खेलें फाग।
परजा डूबी प्रेम में, राजा करता स्वांग॥
दिल्ली में ही कैद हैं, सुख के सभी वसंत।
जो कुछ आया यहां, लूट गए श्रीमंत।
सभी सुखों के वाक्य में, दुःख का एक हलंत।
जीवन के इस चक्र में, हरदम कहां वसंत॥
चेहरे पर झुर्री दिखी, हो गए बाल सफेद।
ऋ तु वसंत की उम्र से, व्यक्त कर रही खेद॥
रंगों को होने लगा, मजहब का अहसास।
फागुन सिर पर हाथ रख, बैठा मिला उदास॥
गुपचुप किया विपक्ष ने, राजा से संवाद।
वेदपाठ भगवा करे, बोले हरा अजान।
फगुआ गाए प्रेम से, मिलकर हिंदुस्तान॥
रंगों से है कर रहा, फागुन यह अनुरोध।
आपस में करना नहीं, आगे कभी विरोध॥
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