गुरुवार, 29 मार्च 2012

अशक्तों की महाशक्ति

कुदरत ने उन्हें भले अशक्त बनाया हो, लेकिन उन्होंने अपने आपको इतना सशक्त बनाया है कि उनकी ऊर्जा के समक्ष बिजली भी नतमस्तक हो जाए। वे अपने अधूरे शरीर को इस कदर पूरा करते हैं कि पूरा शरीर भी अपने को आधा मानने लगे। वे जब नृत्य की आराधना करते हैं तो प्रकृति की दुत्कारी काया वेद बनने लगती है, आत्मशक्ति ऋचाएं और पहियों वाली लोहे की गाड़ी रहल। उनकी हस्त मुद्राओं के साथ पहिए भी दु्रत-विलंबित करते हैं, बैसाखियां ताल से ताल मिलाती हैं। मंच अपने कंधे पर तो दर्शक उन्हें अपनी पलकों पर बैठाकर दुलारते हैं। सैयद सलाउद्दीन पाशा अगर उन्हें गढ़कर धन्य हुए तो नृत्य कला उन्हें पाकर।

विश्व रंगमंच दिवस की शाम दर्शकों ने पहली बार शरीर को नहीं हौसलों को थिरकते देखा। दो घंटे में दस कलाकारों ने अपने रियाज, समर्पण और जीवट से मंच पर ऐसा चमत्कार किया कि 'असंभव' शब्द की रूह कांप गई, भगवान नटराज की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले, बिना पैरों वाले पहाड़ पर चढ़ने को तैयार गए, वाणी विहीन गाने को व्याकुल हो गए, वधिर अनहद नाद सुनने लगे तो नेत्रहीनों के समक्ष सातों रंग इतराने लगे। ख्वाजा ने इनका सूफी कलाम सुना तो महर्षि पातंजलि ने बिना पांव के पद्मासन, शीर्षासन, मयूरासन और वृश्चिकासन की मुद्राएं देखीं। कलाकारों ने जब व्हील चेयर को रथ, बैसाखी को सुदर्शन चक्र और अपने बाजुओं को पैर बनाया तो योगीराज कृष्ण 'महाभारत' के साथ मंच पर उतर आए। मणिपुरी मार्शल आर्ट में पहियों पर हैरतअंगेज तलवारबाजी हुई। तलवार से निकली चिंगारियों ने कलाकारों के श्रम, अभ्यास और प्रतिभा पर हस्ताक्षर किए। पसीने ने जितनी बार उनके माथे को चूमा, उतनी बार उनका ललाट दमका।

जैसे संगीतकार से उसके वाद्ययंत्र बतियाते हैं, व्हील चेयर उनसे बतियाती मिली...जैसे चित्रकार के साथ रंग हंसते हैं, व्हील चेयर उनके साथ खिलखिलाती मिली...जैसे कवि को शब्द और भाव रह-रहकर छेड़ते हैं, व्हील चेयर उन्हें छेड़ती मिली। वह कभी उनका पांव बनी, कभी पोषाक बनी, कभी हथियार बनी, कभी श्रृंगार बनी, कभी हमसफर बनी तो कभी ममतामई मां। मस्ती में झूमते हुए जब कभी वे गिर गए तो तत्काल उठाकर सीने से लगा लिया, जब कभी भटक गए तो पिता की तरह उंगली थाम ली। बेजान पहियों में ऐसी जान दिखी कि पांव वालों को भी एकबारगी बेपांव होने का मन करने लगा। लाचारी का चिन्ह बनी व्हील चेयर ताकत और सामर्थ्य की प्रतीक बनी।

खंडित देहों को अखंड करने का काम जिन सैयद सलाउद्दीन पाशा ने किया वे चुल्लू से समंदर से पीने का हौसला रखते हैं। जिन्हें जमाना हिकारत की नजर से देखता है, उन कोयलों को तपाकर 'कोहीनूर' में तब्दील कर देना किसी ऐरे-गैरे जौहरी का काम नहीं। उन्हें खुदी को खुदा बनाने का हुनर आता है। पार्श्व में प्रकाश और संगीत की बागडोर थामकर, उन्होंने मंच पर जिस दुनिया की रचना की वह किसी स्वप्नलोक-सी थी। खासकर कार्यक्रम के अथ में सूफी संगीत की प्रस्तुति के दौरान दूधिया, नीली और लाल रोशनी से जो चित्रकारी उन्होंने की, उससे सच में लगा कि आत्मा का परमात्मा से संवाद हो रहा है। अंधेरे को चीरते रंगीन रोशनियों के गुच्छे जब कलाकारों के चेहरे पर गिरते थे तो केवल चरित्र जीवंत होता था, बल्कि दर्शकों का दिल भी बाग-बाग होकर दुआएं बरसाता था। वर्षों बाद भी अभय प्रशाल इस बात की गवाही देगा कि दिल्ली के 'एबिलिटी अनलिमिटेड फांउडेशन' के कलाकारों ने इंदौर के कलाप्रेमियों की प्यास को गंगाजल प्रदान किया था।

-ओम द्विवेदी

शनिवार, 17 मार्च 2012

और चौड़ी हुई कीर्तिमानों की छाती

आसमान इसे देखकर कोफ्त करता होगा कि वह इतना ऊंचा क्यों नहीं है, सागर इस बात पर रंज करता होगा कि वह इतना गहरा क्यों नहीं है, धरती इस बात को लेकर परेशान होती होगी कि कोई उससे ज्यादा उम्मीदों के बोझ कैसे उठा लेता है, तूफान अकेले में इस बात पर शर्मसार होते होंगे कि वे उसे डिगा क्यों नहीं पाते, देवताओं को लगता होगा कि उनकी रचना उनसे बड़ी कैसे हो गई। पूरब से सूरज इसकी रोशनी देखकर चमकता होगा, पश्चिम से चांद इसकी चांदनी देखता होगा, उत्तर से हिमालय इसकी ऊंचाई नापता होगा तो दक्षिण से सागर इसकी लहरें गिनता होगा। क्रिकेट इस बात पर खुश होता होगा कि उसने इसे खेला है। बल्ला जब कभी अपना इतिहास लिखेगा तो इसी को अपना खुदा कहेगा, गेंदें जब कभी अपने कत्ल की गवाही देंगी तो इसी का नाम लेंगी। भूगोल कहेगा कि एक था लिटिल मास्टर जिसने वामन की तरह तीन डग में नाप लिया था उसे। शतक तो चीख-चीखकर कहेंगे कि हां मुझे सचिन ने शतायु किया। मराठी साहित्यकार रमेश तेडुल्कर के सुपुत्र और गुरु रमाकांत आचरेकर के शिष्य सचिन तेडुल्कर का महाशतक देखकर स्वयं कीर्तिमान गदगद होंगे। वानखेड़े से लेकर लार्ड् तक के स्टेडियमों की छाती चौड़ी हो गई होगी। स्वर्ग में बैठे क्रिकेट के पूर्वज खड़े होकर ताली बजा रहे होंगे कि अंग्रेजों के खेल को एक हिंदुस्तानी ने मोक्ष प्रदान किया है।

दुनिया जिसे महाशतक कहती है वह एक ऐसे युवक की साधना है, जो गृहस्थ होकर भी एक सन्यासी की तरह दो दशक से मैदान पर अडिग है, जिसकी रगों में खून से ज्यादा खेल दौड़ता है, जिसकी भूख बिना रनों के तृप्त नहीं होती, जिसकी नींद में क्रिकेट के सपने आते हैं, जिसे अपनी परछाई देखकर अपना कद बढ़ाने का हुनर आता है, जिसे दुनिया की आलोचनाएं पका-पकाकर पक्का करती हैं, जो तारीफों के भंवर में फंसकर डूब नहीं जाता, जिसका हर कदम एक नई मंजिल है, जो देश के करोड़ों लोगों की धड़कन है। सत्तर के दशक में पैदा हुई जिस पीढ़ी ने क्रिकेट से दिल लगाया है, ऐसा हो ही नहीं सकता कि वह सचिन का आशिक, सचिन का मुरीद रहा हो। देखने वाले तो देखने वाले, क्रिकेट सीखने वालों ने भी इसे ही देखकर खेलना सीखा है। यह महज इत्तफाक नहीं है कि सचिन के साथ खेलने वाले दुनिया के बेहतरीन क्रिकेटर भी उनकी प्रतिभा और समर्पण का लोहा मानते हैं। विकेट के सामने उनकी चपलता, चंचलता और तकनीक देखकर दांतों तले उंगली दबाते हैं।

सच तो यह है कि जैसे जौहरी हीरे को तराशकर कोहिनूर बनाता है, जैसे मिट्टी को चाक पर घुमा-घुमाकर कुम्हार घड़े में तब्दील करता है, जैसे सालों संग्राम करके कोई मुल्क आजादी हासिल करता है, जैसे कोई नदी पहाड़ों को काटकर सागर का स्पर्श करती है, सचिन ने उसी तरह अपना यह मुकाम हासिल किया है। इस महाशतक में कितने ही प्रशंसकों की दुआएं हैं, जाने कितनी प्रार्थनाएं हैं, जाने कितनी उम्मीदें और कितनी कल्पनाएं हैं। सौवें शतक के इंतजार में जब शंकाओं-कुशंकाओं की अमावस और काली होने लगी थी, तब भी सचिन ने उम्मीदों की ज्योति जलाई और वह चमत्कार भी कर दिया, जिसके लिए वर्षों से कीर्तिमानों के पन्ने ललक रहे थे। आईंस्टीन के शब्दकोष से सचिन के लिए अगर कुछ शब्द उधार लिए जाएं तो ठीक से कहा जा सकता है कि आने वाली पीढ़ियां इस बात पर यकीन नहीं करेंगी कि धरती पर कभी हांड-मांस का कोई ऐसा पुतला भी था।

-ओम द्विवेदी